अशोक अग्रवाल शिवपुरी प्रसंगवस-सोमवार सुबह तकरीबन 8 बजे मेरे पास जिला चिकित्सालय में इलाज के दौरान मृत घोषित किये गए अमृत के मित्र मोहम्मद सयूम का फोन आता है और वो कहता है कि सर जी अब हमारी रिपोर्ट निगेटिव आ गई है हमें अपने मित्र अमृत की मृत देह लेकर अपने गाँव जाने की व्यवस्था करवा दो,सयूम को आश्वासन देने के उपरांत उसी समय मैंने जिला चिकित्सालय के सिविल सर्जन डॉ पीके खरे को फोन लगाया तो उन्होंने कहा कि उनके कागज तैयार है और बामुश्किल 15 मिनट में वो गाँव के लिए रवाना कर दिया जाएगा।यह सुनकर हम अस्पताल पहुँचे तो वँहा देखा तो वँहा कोई तैयारी नहीं थी एक बार फिर हमने सिविल सर्जन से संपर्क किया तो बोले गाड़ी की व्यवस्था हो रही है,फिर कोई सुनवाई नही तो फिर संपर्क किया तो फिर बताया... यह सिलसिला दोपहर 12 बजे तक चलता रहा,फिर बताया गया कि झांसी जिला प्रशासन से बात की गई है वो गाड़ी भेज रहे है,फिर 4 बजे तक यही दोहराया जाता रहा,लगभग 4.30 पर झांसी जिला प्रशासन के द्वारा भेजी हुई गाड़ी आई और फिर आनन फानन में अमृत के मृत देह को भेजने की तैयारी की जाने लगी,गाड़ी को सेनेटराइज्ड कर पीएम हाउस भेज दिया गया,जंहा जैसे ही गाड़ी में रखने के लिए मृत देह को उठाने का प्रयास किया गया तो पता चला कि वह तो पूरी तरह सड़ चुकी है और उसने पानी छोड़ दिया है,वोडी की ऐसी स्थिति देख एम्बुलेंस चालक गाड़ी में बॉडी रखने से इंकार करने लगा तब उसे समझाकर कहा गया कि आप रुको हम उचित प्रबंध करते है तब एक पीली पन्नी मंगवाई गई और उसमें किसी तरह अमृत की मृत देह को लपेटा गया और किसी तरह एम्बुलेंस में रखवाकर रवाना की जा सकी।
सुबह 8 बजे से लेकर मृत देह की रवानगी तक मै लगभग वंही मौजूद रहा और इस मानवता को शर्मशार करने बाली घटना का चश्मदीद रहा।मृत देह की रवानगी निश्चित ही मुझे सुकून दे रही थी,उस समय मुझे लगा कि इस मार्मिक और शर्मशार करने बाले घटनक्रम पर कल के समाचार पत्र इस खबर को प्रमुख स्थान देंगे पर मै भूल गया कि आज का युग विज्ञापन का युग है,अखबार विज्ञापन से चलता है खबरों से नहीं, वैसे भी अमृत कौनसा हमारे जिले अथवा प्रदेश का रहने बाला था...
अधिक लिखना शायद उचित नहीं सो यंही विराम देते हैं।
मेरा मकसद किसी को कष्ट पहुँचाना नही बस मन को जो लगा वो शब्दो मे पिरोने का प्रयास किया है।
सभी मित्रों से इस गुस्ताखी के लिए क्षमा मांगते हुए.......

