आचार्य पुलक सागरजी महाराज ने किए केशलोंच दुर्भाग्य को सौभाग्य में बना लो तुम्हारी सोच बदल के रख दूंगा पुलक सागर जी

  बांसवाड़- बाहुबली कॉलोनी जैन मंदिर में आचार्य पुलक सागरजी के सान्निध्य में शनिवार को शिक्षण क्लास कई ऐसे प्रश्न आए जिनका उत्तर कई बार सोचने पर मजबूर कर देता है। हमारा अस्तित्व और संसार का स्वरूप क्या है। जब धार्मिक क्लास में स्वाध्याय किया तो अब लगता है कि अब तक अज्ञान में डूबे हुए थे। आचार्य ने बताया एक मछली पानी में रह रही है और कह रही है मुझे प्यास लग रही है तो उस मछली को क्या बोलेंगे। सबने अपना-अपना तर्क दिया। मगर उत्तर नहीं दे पाए। गुरुदेव ने बताया उस मछली का दुर्भाग्य है की पानी में रहकर भी वह प्यासी है उसी तरह जैन धर्म में पैदा हुए जैन धर्म का पालन नहीं किया। यह स्वयं का दुर्भाग्य है। इसी तरह गुरुदेव ने फिर पूछा मछली इस दुर्भाग्य को सौभाग्य में कैसे बदल सकती है?.. तो गुरुदेव ने बताया मछली को अपनी सोच बदल कर अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल सकती है। उन्होंनेे कहा तुम भी अपना दुर्भाग्य को अपने सौभाग्य में बदल सकते हो सिर्फ अपनी सोच बदलनी है। आचार्यजी ने कहा मैं पुलक सागर यहां चातुर्मास कर रहा हूं अपना दुर्भाग्य को सौभाग्य में बना लो तुम्हारी सोच बदल के रख दूंगा। गुरुवर ने कहा अभी तक तुमने भगवान के स्वरूप को क्यों नहीं जाना? क्योंकि अभी तक तुमने उनके बारे में सोचा ही नहीं। अगर सोच बदल जाएगी तो मेरा दावा है तुम्हारे थाली में कभी अंडा नहीं आएगा। कभी सिगरेट नहीं पियोगे। कभी अभक्ष्य का सेवन नहीं करोगे। यह सब अगर मेरे द्वारा तुम्हारी सोच बदल जाती है और तुम जिनेंद्र भगवान के कहे रास्तों पर चल जाते हो तो मैं समझूंगा मेरा यहां का चतुर्मास करना मेरे लिए साकार हुआ। आचार्य जी ने कहा कि पूरे विश्व में जैन की संख्या कम क्यों हैं?.. क्योंकि जिनेंद्र मार्ग पर चलना कठिन है, अगर तुम्हें दो मार्ग बताएंगे एक सरल एक कठिन तो तुम सरल पर चलेंगे। जैन धर्म सरल वाला नहीं है, यह कठिन मार्ग है। इस पर चलने वाला कोई सत्पुरुष या महापुरुष ही होते है। चातुर्मास कमेटी के प्रवक्ता महेंद्र कवालीया ने बताया गुरुदेव ने गति के बारे में बताते हुए कहा जहां सुख ज्यादा दुख कम वह मनुष्य गति हैं जहां दुख ही दुख वह नरक गति है। जहां दुख ज्यादा सुख कम वह पशु गति है। साथ ही जहां सुख ही सुख है वह देव गति है। 
    वही शनिवार की प्रातः बेला मे स्वय अपने हाथो से आचार्य श्री ने  केशो का लुंचन किया  और आचार्य श्री का उपवास रहा
                संकलन अभिषेक जैन लूहाडीया रामगंजमंडी

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