जिंदगी में कभी कृतघ्न नही कृतज्ञ होना चाहिए विराग सागर जी

 परम पूज्य गणाचार्य श्री  विरागसागर जी महाराज ने धर्मात्मा को संबोधित करते हुए कहा है कि हमारी भारतीय प्राचीन परम्परा रही है कि व्यक्ति कभी भी उपकारी के द्वारा किए गए  उपकारों को भूलते नहीं है जो  उपकारी के उपकारी को स्मरण रखते है वे कृतज्ञ तथा जो स्मरण नहीं रखते है वे कृतघ्न कहलाते है जिंदगी में कभी भी कृतघ्न नहीं कृतज्ञ बनना चाहिए  कृतज्ञ व्यक्ति महापुरुष उच्चपुरूष कहलाते है तथा  कृतघ्न व्यक्ति  दुर्जन पुरुष कहलाते है तभी हमारे यहां ग्रंथो के प्रारंभ करने के पूर्व शुभकार्यों के प्रारंभ पूर्व अपने इष्ट परमात्मा गुरुओ का स्मरण करते है वास्तव में प्रभु का स्मरण मंगलाचरण प्रभु गुरु से साक्षात्कार उन तक पहुंचने का माध्यम उपाय है प्रभु गुणगान में निकले ही उदगार ही अक्षर अक्षर से जुड़ भजन गीतों में परिवर्तित हो जाते है । नास्तिकता को दूर पुण्य की प्राप्ति की प्राप्ति कराता है पूज्य गुरुवर ने कहा कि दुखों से घुटने का उपाय बहिरात्मा बुद्धि अर्थात शरीरादी परिवार से ममत्व पनो को त्याग कर अंतरात्मा बुद्धि अर्थात शरीरादी परिवार से मोहममता को त्याग भेद विज्ञानी बनकर परमात्मा पद पाने की साधना करके उस पद की प्राप्ति है परमात्मा पद ही एक ऐसा पद स्थान है जहां दुख नही सुख ही सुख है अतः बहिरात्मा में हेय त्याग अंतरात्मा में उपादेय ग्रहण और परमात्मा में ध्येय लक्ष्य प्राप्ति का नित्य उद्देश्य होना चाहिए ।
मन को प्रभु ध्याय स्मरण में लगाने के लिए में को इंद्रिय विषयो सांसारिक कार्यों से हटाना पड़ेगा 
मन को प्रभु के गुणों में लगाना पड़ेगा क्योंकि एकसाथ दो काम नहीं हो सकते है कि  सांसारिक कार्यों में लगा रहे और प्रभु में ध्यान में लगा रहे अतः जब मन पवित्र तनावमुक्त होता है तो प्रभु स्मरण में आनंद आता है जैसे समूह में नई नई तरंगे उठती रहती है वैसे ही प्रभु स्मरण से हृदय के अंदर नए नए अभूतपूर्व आह्लाद आनंद की लहरे  उठती है वास्तव में यही आनंद प्रसन्नता ही धर्म है
उक्त जानकारी राज कुमार अजमेरा, नवीन गंगवाल कोडरमा ने दी
   संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी

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