दमोह-वैज्ञानिक सन्त आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने कहा गीत गाना, संगीत बजाना ख़ुशी आनंद, आस्था निर्मलता एवं भक्ति का परिचायक है। जब तीर्थंकरो का जन्म होता है, दीक्षा होती है, केवलज्ञान कल्याणक आदि होते है तब साढ़े बारह करोड़ के वाद्ययंत्र बजते है। इसीलिए भगवान की पूजा के समय मन्दिरो में संगीत बजाना आगम विरुद्ध नही है। जब संगीत बजता है तो रोता हुआ बच्चा भी हसता है, जब बीन का संगीत बजता है तो नाग भी झूम उठता है। रोगी भी संगीत सुनकर अपना रोग भूल जाता है इसी प्रकार भक्ति संगीत से व्यक्ति विषय कषाय को भूल जाता है।
आचार्य ने कहा जिसके जीवन में हमेशा शान्ती पुरुषार्थ और सजगता है जिसका जीवन कर्तव्य पूर्ण करने के लिए चहकता है उसकी किस्मत का सितारा आज नही तो कल चमकता है। अर्थ पुरुषार्थ गरीब को भी अमीर बना देता है। धर्म पुरुषार्थ दैत्य को भी देवता बना देता है। पुरुष दिल लगाकर सही पुरुषार्थ तो सही पुरुषार्थ पुरूष को परमात्मा बना देता है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी
