पोहरी : राजनीति न तो एक जाति ,धर्म या वर्ग के आधार पर होती है और न ही वातानुकूलित घर में रहकर,आज के समय मे राजनीति के जनता के बीच उनकी ही भाषा में उनके बीच बैठकर उनके मन की बात सुनकर की जा सकती है और यही लहजा है पोहरी विधानसभा उपचुनाव में भाजपा के प्रत्याशी सुरेश धाकड़ राँठखेड़ा का,राँठखेड़ा एक सहज ,सरल व्यक्तित्व के धनी है, वे न केवल जनता के प्रति ईमानदार हैं बल्कि राजनीति में अपने गॉड फादर राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के भी है । एक सामान्य से किसान परिवार में जन्मे सुरेश राँठखेड़ा गाँव की राजनीति से लेकर मध्यप्रदेश सरकार में राज्यमंत्री तक का सफर तय कर चुके हैं, ढाई दशक तक अपने राजनीतिक गुरु सिंधिया के कांग्रेस का झंडा उठाते रहे और पार्टी संगठन में विभिन्न दायित्वों का निर्वहन भी करते रहे,ये बात अलग है कि हर बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पैनल में सुरेश धाकड़ का नाम शामिल होता था लेकिन बाजी उनके हाथ नहीं लगती थी,टिकिट न मिलने के बाद भी सुरेश के मन मे कभी अपनी पार्टी और अपने नेता के प्रति विरोध के स्वर सुनाई नहीं दिए ।
लगन, निष्ठा और पार्टी के प्रति उनके ढाई दशक के समर्पण भाव को देखकर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सुरेश धाकड़ को पोहरी के कांग्रेस का अधिकृत उम्मीदवार घोषित कर दिया जब कि भारतीय जनता पार्टी की ओर से सिटिंग विधायक प्रहलाद भारती सजातीय उम्मीदवार मैदान में थे, सुरेश को क्षेत्र में शुरुआती रुझान में कम ही तवज्जों मिल रही थीं लेकिन मतदान की तारीख़ आते आते सुरेश धाकड़ 2018 के आम चुनाव में बाजी मार गए, 15 माह तक कांग्रेस सरकार में वे सिर्फ क्षेत्र के विकास के लिए संघर्षरत दिखाई दिए । उनके नेता ने तमाम कारणों का हवाला देते हुए जब कांग्रेस हाथ छोड़कर भाजपा का दामन थामा तो सुरेश उन माननीयों में शामिल थे जिन्होंने कहा था कि यदि महाराज अलग पार्टी बनाएंगे तो सबसे पहले मैं उनके साथ जाऊँगा, जब सिंधिया ने भाजपा का दामन थाम लिया तो सुरेश धाकड़ भी भाजपाई हो गए और और विधायकी को ऐसे त्याग दिया जैसे कोई मोह ही न हो ,उस त्याग का सिंधिया की सिफारिश पर भारतीय जनता पार्टी ने सुरेश धाकड़ को राज्यमंत्री बनाकर इनाम दिया, यानी कि विधायक पद छोड़ा तो मंत्री पद मिला,अब सुरेश एक बार फिर उपचुनाव के मैदान में भाजपा के अधीकृत उम्मीदवार हैं और ग्राउंड रिपोर्ट देखी जाए तो सुरेश धाकड़ की जीत सुनिश्चित दिखाई देती है, हर कोई यही कहता है कि सुरेश के भाग्य में राजयोग है लेकिन राजनीति की भाषा मे कहे तो ये जनआशीर्वाद या जनाधार है जो लगातार सुरेश के साथ है ।