जनसेवा, समर्पण, लगन और निष्ठा का दूसरा नाम हैं डॉ. धाकड़

 

ग्वालियर। ये दौर कठिन है और इस कठिन दौर की शुरुआत पिछले साल नव वर्ष के आगमन के साथ ही दस्तक दे चुका था, इस बुरे वक्त को नाम मिला "कोरोना" । शासन - प्रशासन अपनी कमर कसने की तैयारी में था तो इस बुरे वक्त से दो - दो हाथ कोई कर रहा था तो डॉक्टर्स, ये वही डॉक्टर्स हैं जिन्हें हम भगवान कहते हैं ।

किसी भी संस्था के बखूबी संचालन के लिए संचालक की दक्षता बहुत मायने रखती है, संचालक का भाव अपने संस्थान के प्रति समर्पण का होना चाहिए, काम के प्रति लगन और निष्ठा होनी चाहिए । 

अंचल के सबसे बड़े अस्पताल जयारोग्य अस्पताल समूह ग्वालियर को इस वक़्त ऐसे ही संचालक की आवश्यकता थी, और पद की गरिमा को ऊंचाईयों तक पहुंचाने के गुण यदि किसी मे दिखे थे डॉ आर के एस धाकड़ जी में, डॉ धाकड़ उस वक़्त अस्थि रोग विभाग में बतौर प्राध्यापक अपनी सेवाएं दे रहे थे, वैसे तो डॉ धाकड़ किसी परिचय के मोहताज नहीं है, इंडियन मेडिकल एशोसिएशन और ऑर्थोपेडिक एसोशिएशन में अनेकों पदों को सुशोभित करते रहे हैं ।

आज 25 मई 2021 को डॉ आर के एस धाकड़ जी को जयारोग्य अस्पताल समूह के अधीक्षक एवं संयुक्त संचालक पद पर एक वर्ष पूरा हो गया है, डॉ धाकड़ के लिए कार्यकाल चुनौतीपूर्ण रहा, अस्पताल की चरमराती व्यवस्थाओं को दुरस्त करने से लेकर अस्पताल परिसर से असमाजिक तत्वों को खदेड़ने का कार्य बड़ी कुशलता के साथ किया, पिछले साल अपनी सूझबूझ और कुशल प्रबंधन से और जिला प्रशासन और नगर निगम प्रशासन के सहयोग से ग्वालियर को कोरोना मुक्त करने का श्रेय डॉ धाकड़ को दिया जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी ।

इस वर्ष भी कोरोना महामारी में मची हाहाकार के बीच न केवल अस्पताल में भर्ती मरीजों को बेहतर चिकित्सीय सुविधा दिलाने का काम किया बल्कि मदद के लिए उठती हर पुकार को सुनकर सहयोग किया है, ऑक्सीजन की उपलब्धता हो या फिर रेमेडिशिवर इंजेक्शन की आवश्यकता, दो धाकड़ ने सरकार से सरोकार बनाकर क्षेत्र की जरूरत मंद जनता को जीवनदान देने में अपने कर्तव्य का बखूबी निर्वहन किया, जनसेवा, समर्पण, लगन और निष्ठा का दूसरा नाम ही डॉ. धाकड़ है । 

फ़ोन की घंटी शायद ही रात को सोने देती हो,जब कभी थकान मिटाने आँख लग भी जाती हो तो फोन बजने के साथ ही पलक खुल जाते हैं और दौड़े - दौड़े पहुँच जाते हैं अस्पताल, इस महामारी में जब लोग एक दूसरे से दो गज की दूरी बनाना ही नहीं बल्कि सगा रिश्तेदार अपने ही सगे के अंतिम संस्कार के लिए शव को लेने से इनकार कर दे ऐसे में डॉ धाकड़ जैसे लोग अपने परिवार की परवाह न करते हुए चौबीसों घंटे अस्पताल में कोरोना की चपेट में आये लोगों के बीच अपना समय काट रहे हैं, यहाँ तक कि परिवाजनों के कोरोना पॉजिटिव होने के बाद चिकित्सा सेवा का लाभ जैसे बेड और ऑक्सिजन,इंजेक्शन जरूरतमंद को प्राथमिकता के तौर पर दिलाने का कार्य किया है ।   डॉ आर के एस धाकड़ जैसे श्रम,त्याग, समर्पण और अपने कार्य के प्रति निष्ठा रखनी होती है ।


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