कोटा--सारी दुनिया में कुछ ऐसी संस्कृति है जो एक दुसरे से मिलती हैं लेकिन भारत की अपनी पृथक संस्कृति है, जो दुनिया में नहीं है वह भारत में है धन दौलत मकान आदि दुनिया में है भारत से अच्छी भोग सामग्री भी है लेकिन जो भारत में है वो दुनिया में कहीं नहीं है
विदेश के लोग भारत देखने आते है मैने पुछा आप भारत में क्या देखने आते हो बोले भारत के खण्डर देखने आते हैं जिन्हें तुमने छोड़ दिया
उक्त आशय के उद्गार मुनि पुगंव श्री सुधासागरजी महाराज ने पार्श्वनाथ निलय का शिलान्यास पार्श्वनाथ कोपयार्ड बून्दी रोड़ पर नवीन मन्दिर के शिलान्यास समारोह को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
*नवीन मन्दिर की रखी आधार शिला*
नवीन मन्दिर की आधार शिला प्रदीप जैन प्रकाश जैन के साथ प्रदीप कुमार मुरली भइया ने प्रतिष्ठा चार्य प्रदीप भइया अशोक नगर के मंत्रोचार के बीच रखी। इसके पहले आचार्यश्री विद्या सागर जी महाराज के चित्र का अनावरण समाज के महामंत्री विनोद टोरडी राकेश मडिया ने किया दीप प्रज्वलन महापौर राजीव कुमार अमित धारीवाल व अजमेरा राजेश आनंद डॉईगॉनोस्ट ने किया
*भव्य प्रवेश मे होगे भक्त सम्मलित
समारोह में तीर्थ वंदना के सह सम्पादक विजय जैन धुर्रा ने कहा कि मुनि संघ भीषण गर्मी में चवलेश्वर तीर्थ से पद विहार करते हुए शिक्षा नगरी में प्रवेश कर रहे सोमवार सुबह पुण्योदय तीर्थ दादावाड़ी में प्रातः काल की बेला में भव्य प्रवेश होगा जहाँ भक्त समलित होकर भक्ति करेगे सभा में संजय सावल ने कहा कि कोटा का सौभाग्य है मुनि श्री की कृपा निरन्तर वरसती रहती है हमे आगे भी सान्निध्य मिले यही प्रार्थना है।
मुनि श्री ने कहा कि जब मैं शेखावाटी गया और वहां सुखाश्राम लाडनू सुजनगंड़ की हवेली देखी वहां मालिक नहीं थे चौकी दार रहते हैं देखा कि भीड़ चली आ रही है सब विदेशी थे।
*वस्तु का मूल्य नहीं होता उपयोगिता का मूल्य
उन्होंने कहा कि भारत में वस्तु का मूल्य नहीं जानते उपयोगिता का मूल्य करते थे मैने कहा पूर्वजों ने इन्हें संस्कृति को सुरक्षित रखना नहीं सिखाया। हमे वस्तु की पहचान नहीं हमे पहचान किसकी है। हमे मा बाप नहीं चाहिए, माॅ बाप से चाहिए। उस विदेशी ने बताया भारत वालो को भगवान नहीं भगवान से चाहते है। उस विदेशी का जवाब सुनकर दंग रह गया कल का जो भारत था पानी रखने की घिनोची के चूले का फोटो ले रहे थे।
*भारतीय संस्कृति को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी है-
मुनि श्री ने महानुभव अपनी जिदंगी से से हटा दो मुझे भारत से नहीं भारत चाहिए। मुझे भगवान से नहीं चाहिए भगवान चाहिए। मुझे माता पिता से नहीं माता पिता चाहिये।
इस बार गुरु से नहीं गुरु चाहिए बस मैं यही चाहता हूँ।
वे हमारे देश की एक संस्कृति भी जिसकी रक्षा के लिए श्रीराम बलशाली रावण से युद्ध के लिए तैयार हो युद्ध जीतकर भी लंका को छोड़ देते है ये भारत की संस्कृति और इतिहास।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी
