दूसरों के बारे में बुरा सोच रहा था, जबकिमेरे अस्तित्व के लुटेरे तो मेरे साथ ही हैं : मुनि श्री पूज्य सागर जी

डूंगरपुर-आज मौन साधना का आठवां दिन है। मेरा मन बेहद बेचैन है। चिंतन के दौरान जहन में एक बात उठी कि देखा जाए तो मौन साधना में पांचों इंद्रियां स्पर्श, रसना, घ्राण, चक्षु, कर्ण बाधक हैं। यहीं तो जीवन में विष घोलने वाली हैं। क्योंकि, यही हमें बाहरी बातों का अनुभव कराकर मन को भटकाती हैं। जिन चीजों के बारे में कभी कल्पना भी नहीं की थी, वे सभी चीजें इन्हीं के कारण मन में आ जाती हैं। मुनि ने यह बातें माैन यात्रा के दाैरान महसूस की और इसे लगातार साझा किया। इन्हीं इन्द्रियों के कारण हम अपने विचारों से भटक अन्य लोगों की कल्पना में जीने लग जाते हैं और धीरे-धीरे इतने दूर पहुंच जाते हैं कि वापस स्वयं के विचार, कल्पनाओं और सपनों को पूरा करने का अवसर ही नहीं मिलता। जो दूसरों की कल्पना के अनुरूप चले, वह अपना भविष्य कैसे लिख सकता? सच तो यह है कि उसका भविष्य तो और कोई लिख रहा होता है। इंद्रिया भी तो कर्म जनित हैं। इंसान दूसरों के कारण ही कर्म में बंधता है। जो स्वयं में रहता है, वह तो कर्मों की निर्जरा करता है। यही सिद्धांत है। मेरा संत जीवन इंद्रियों पर नियंत्रण करने के लिए सर्वश्रेष्ठ है। मैंने अपने जीवन में इन्द्रियों पर ही तो नियंत्रण किया है। फिर भी पांचों इन्द्रियां कर्म जनित हैं, कब कौन सा पुराना कर्म उदय में आ जाए, किसी को पता नहीं। आंखों काे अपने अनुसार देखने की इच्छा, कानों को अपनी तारीफ सुनने की ललक, जिव्हा से अपने लिए मीठे शब्द सुनने का लालच, नाक को अपने अनुसार गंध की स्पृहा, स्पर्श को मौसम के अनुसार स्पर्श की चाहत। यह सब पूर्व कर्मों के उदय होने पर होता है। यही इच्छा तो इंसान की इंसानियत को हैवानियत तक में बदल देती है।
        संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.