बुधवार सुबह महावीर जिनालय में विराजमान मुनि पदम सागर महाराज द्वारा केश लौंच की प्रक्रिया को किया गया जिसके तहत उन्होंने 24 घंटे का उपवास भी रखा। जैन मिलन के अध्यक्ष वीर अल्पेश जैन ने बताया कि जैन संत अधिकतम 2 माह में केशलोंच की प्रक्रिया करते हैं।
चूंकि वह अपरिग्रही होते हैं अर्थात मयूर पंख से निर्मित पिच्छिका और कमंडल के सिवा कोई भी उपकरण नहीं होता वह पैसा धेला के साथ किसी भी तरह की सुविधाओं को उपयोग में नहीं लेते इस वजह से अपरिग्रह व्रत का पालन करते हुए वह संयम की राह पर लगातार आगे बढते हैं।
जैन मिलन के मंत्री वीर मनोज जैन ने बताया कि किसी भी संत की दीक्षा का पहला चरण केश लौंच होता है। क्योंकि इस प्रक्रिया से शरीर से ममत्व भाव घटता है। इसलिए आंतरिक चेतना के जागरण और नश्वर देह से राग हटाने के लिए संतों की यह प्रक्रिया जीवन में वैराग्य लाने और कड़ी धर्म साधना का एक प्रतीक होती है।
कुल मिलाकर उनकी इस चर्चा को देखकर लोगों की आंखों से करुणा के नीर छलके लेकिन मुनि श्री ने अपने एक एक केश को ऐसे हाथ से निकाला मानों उन्हें कोई कष्ट ही नहीं हो रहा हो।