"एक पेड़ माँ के नाम" नहीं बल्कि ये पौधों की बाल हत्या है


देश के प्रधानमंत्री कुछ न कुछ नई मुहिम शुरू करते हैं और इस मुहिम को भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता से लेकर नेता एक आंदोलन की भूमिका प्रदान कर देते हैं। इस बार उन्होंने "एक पेड़ माँ के नाम" लगाने की अपील जनता से की तो इस अपील को न केवल भारतीय जनता पार्टी परिवार ने बल्कि आम आदमी ने भी गंभीरता से लिया और जन आंदोलन का रूप देकर लाखों - करोड़ों पौधे रोपे जा रहे हैं और पेड़ लगाने की एक होड सी लग गई है । कोई समाजसेवी संस्था 11 लाख तो कोई शहर 51 लाख पौधे रोपकर नया कीर्तिमान स्थापित करने की लालसा में पेड़ लगा रहे हैं। जब कोई जनप्रतिनिधि या प्रदेश का मुखिया वृक्षारोपण कार्यक्रम में सरीख होता है तो साफ है सरकारी मशीनरी का उपयोग होगा और सरकारी मशीनरी अफसर और कर्मचारी सरकारी कोष को पानी की तरह बहाते हैं , पेड़ लगाने के नाम पर सरकारी खजाने को भी खुर्दबुर्द किया जा रहा होगा इस बात पर कोई संशय नहीं होना चाहिए क्योंकि हजारों का खर्चा लाखों में और लाखों का व्यय करोड़ों में बिल दिखाकर सत्ता की मलाई खाएंगे ये बात भी सत्य है ।

आज के समय में पर्यावरण को सहेजने के लिए वृक्षारोपण अत्यंत आवश्यक है क्योंकि जिस प्रकार से वातावरण का तापमान बढ़ रहा है और बारिश कम होती जा रही है, ऐसे में आने वाले निकट भविष्य में जीवन कष्टदायक होगा । लोगों ने गांव छोड़कर शहर की ओर पलायन शुरू कर दिया तो रहवासी कॉलोनी बनाने के लालच में भूमाफियों ने पेड़ों की बलि चढ़ा दी। ग्रामीण अंचल में खेती योग्य जमीन के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई की तो जिस पेड़ की जमीन पर खेत जोतने जाने वाला किसान थककर छांव तलाश करता है। आने वाली पीढ़ी के लिए पर्यावरण की रक्षा करने ,वर्तमान पीढ़ी का जीवन सुखमय बनाने के लिए माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की मुहिम "एक पेड़ माँ के नाम" हकीकत में काबिल ए तारीफ है । सवाल है कि क्या सिर्फ पेड़ लगाना काफी है तो यकीनन जबाव मिलेगा कि नहीं.... पेड़ लगाने से कहीं अधिक पेड़ बचाने की जरूरत है । प्रधानमंत्री जी से प्रेरित होकर लगाए जा रहे पेड़ों की रक्षा करने की जिम्मेदारी कौन निभाएगा , उन नन्हे शिशुओं से बाल पौधों का लालन पालन कौन करेगा .. या फिर सिर एक दिन पेड़ लगाते हुए फोटों खींचकर सोशल मीडिया पर लाइक और कमेंट बटोरना ही वृक्षारोपण है । वृक्षारोपण करने का मतलब राजनेताओं के लिए फोटो सेशन और अधिकारी करचरियों के लिए सरकारी खजाने में सेंधमारी उद्देश्य है ऐसे में रोपे जा रहे पौधों का भविष्य चिंताजनक है क्योंकि ये पहला मौका नहीं है जब इस प्रकार से वृहद वृक्षारोपण किया जा रहा है। इससे पहले पूर्व की प्रदेश सरकार ने भी नर्मदा के किनारे सरकारी आंकड़े के अनुसार छः करोड़ पेड़ लगाए गए थे लेकिन सवाल वही है कि उन छः करोड़ पौधों में से कितने पौधे आज वृक्ष बन पाए और अब भी वही होगा जो पूर्व में हुआ । हम वृक्षारोपण के पक्षधर हैं और समय समय पर वृक्षारोपण भी करते हैं और वो भी तब तक जब तक कि वो वृक्ष नहीं बन जाता , यदि आज जिन पौधों को रोपने वाले उनके लालन पालन की जिम्मेदारी महसूस नहीं कर पा रहे हैं तो अनुरोध है उनसे कि मत लीजिए अपने सिर पर एक बाल पौधे की हत्या का पाप... उस पौधे को बड़ा होने दीजिए जहां उसने जन्म लिया है, अपील है नेताओं से कि वृक्षारोपण के नाम अफसरों को सह मत दीजिए सरकारी खजाने को लूटने की , सावधान हो जाईए पौधों की बाल हत्या करने से पहले क्योंकि आप लोगों ने ही गांवों को गोद लेने की परंपरा बनाई थी और आज वो गांव विकास की पहुंच से कोसों दूर हैं, गोद लिए गांव अब तक पैरों पर खड़े नहीं हो पाए हैं।

( ये लेखक के अपने निजी विचार हैं )

इंजी. वीरबल सिंह धाकड़ ( कवि , लेखक एवं स्वतंत्र पत्रकार )
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