कामयाब इंसान बनने के लिए सकारात्मक सोच जरूरी : मुनि श्री सुधासागर

अभिषेक जैन आँवा-श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र 'सुदर्शनोदय' तीर्थ आँवा में चातुर्मास में शुक्रवार को मुनि पुंगव सुधा सागरजी महाराज ने मंगल प्रवचन में कहा कि मन में दूसरों के प्रति ईर्ष्या भाव रखना , वाणी से कटुवचन कहना व शारीरिक रूप से दूसरों का अहित करना यह तीन तरह से जातक पाप का भागी बनाता है। वहीं पुण्य प्राप्त करने के बहुत से मार्ग है जिसमें परमपिता परमेश्वर की आराधना करना, दान करना, जरूरतमंद की सहायता करना, माता-पिता की सेवा करना, पशु-पक्षियों को भोजन खिलाना आदि है। दूसरों का अहित करना सबसे बड़ा पाप है और किसी जरूरतमंद व्यक्ति की बिना किसी स्वार्थ के मदद करना सबसे बड़ा पुण्य है |
अतिशय क्षेत्र 'सुदर्शनोदय' तीर्थ आँवा में चातुर्मास में धर्म की वाणी सुनाते हुए मुनि श्री ने कहा कि श्रावक का प्रमुख धर्म दान पूजन है। पहला श्रमण धर्म तथा दूसरा श्रावक धर्म है। गृहस्थ का धर्म प्रवृत्ति प्रधान धर्म हैं। देने का नाम दान है, सर्वस्व दे देना त्याग है। मुनि सुधा सागर जी ने आहार दान के महत्व पर प्रकाश डाला। दान भी सात्विक, राजस और तामस इन भेदों में है।
मुनि पुंगव ने धर्म सभा मे बताया कि जैन ग्रंथों में पात्र, सम और अन्वय के भेद से दान के चार प्रकार बताए गए हैं। पात्रों को दिया हुआ दान पात्र, दीन दुखियों को दिया हुआ दान करुणा, सहधार्मिकों को कराया हुआ प्रीतिभोज आदि सम तथा अपनी धन संपत्ति को किसी उत्तराधिकारी को सौंप देने को अन्वय दान कहा है। दोनों में आहार दान, औषध दान, मुनियों को धार्मिक उपकरणों का दान तथा उनके ठहरने के लिए वसतिदान को मुख्य बताया गया है। ज्ञानदान और अभयदान को भी श्रेष्ठ दानों में गिना गया है। सकारात्मक सोच सही मायने में एक अच्छा और कुशल जीवन जीने की कला है।सकारात्मक द्रष्टिकोण आनंद की अनुभूति देता है।

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