राहुल जैन पोहरी | चुनावी साल में गरीबों और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को सस्ती बिजली और बिल माफ़ी का तोहफा देने वाली सरकार की यह योजना अब सुप्रीम कोर्ट पहुँच गई हैं| प्रदेश में सरकार ने 1 जुलाई से सरल बिजली बिल और बकाया बिजली बिल माफी योजना को लागू किया है| जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है, इसके पूर्व इस संबंध में दायर जनहित याचिका को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट का कहना था कि यह सरकार और बिजली कंपनी के बीच का मामला है। यदि बिजली कंपनी को कोई आपत्ति है तो वो सामने आए। नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के डॉ पीजी नाजपाण्डे ने याचिका दायर की थी|
हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर कर दी गई है। इसमें आरोप लगाया गया है कि आगामी विधानसभा चुनाव से पूर्व मौजूदा शिवराज सिंह चौहान सरकार ने भाजपा का वोटबैंक को साधने के लिए यह योजना शुरू की गई है| इस मामले में अधिवक्ता अक्षत श्रीवास्तव पैरवी करेंगे। मामले की सुनवाई एक सप्ताह के अंदर होने की संभावना है। विशेष अनुमति याचिकाकर्ता नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के प्रांताध्यक्ष डॉ.पीजी नाजपांडे व डॉ.एमए खान ने प्रेस कॉफ्रेंस में आरोप लगाया कि राज्य शासन का बिजली बिल माफी का निर्णय मनमाना है।
नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के डॉ.पीजी नाजपांडे और एमए खान ने याचिका में कहा, बीपीएल कार्डधारकों और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को 200 रुपए प्रतिमाह में बिजली दी जा रही है। एक जुलाई तक इनके बकाया बिजली बिलों को भी माफ किए जा रहे हैं। योजनाओं से बिजली वितरण कंपनियों का बजट पर प्रभाव पड़ेगा, और इसका खामियाजा आम उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ेगा, बिजली की दरें बढ़ेंगी और आम जनता को महंगी बिजली लेनी पड़ेगी, सरकार ने सिर्फ आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए ये योजनाएं लाई है| याचिकाकर्ता ने तर्क दिया गया है कि इसी तरह नि:शुल्क बिजली देने के खिलाफ 2003 में याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट की शरण ली थी। तब कोर्ट ने तत्कालीन सरकार को 100 करोड़ रुपए चुकाने के निर्देश दिए थे। इस निर्णय के अनुसार सरकार को बिजली कंपनियों को 5179 करोड़ रुपए जमा करने के बाद ही ये योजनाएं लागू करने का हक है। जबकि हाइकोर्ट ने 13 जुलाई 2018 को इस संबंध में दायर उनकी याचिका खारिज कर दी। इसके पीछे राजनीतिक लाभ लेने की मंशा स्पष्ट है। लिहाजा, हाईकोर्ट को अग्रिम राशि जमा करवानी चाहिए थी। पूर्व में ऐसा किया जा चुका है। चूंकि हाईकोर्ट ने जनहित याचिका खारिज कर दी, अत: उस आदेश को पलटवाने सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा। इस बारे में जनहित याचिका खारिज होने के दिन ही घोषणा कर दी गई थी।