अभिषेक जैन रतलाम-स्वतंत्रता दिवस पर लोकेंद्र भवन में अखंड भारत की झलक दिखाई देगी। इसमें सभी मुनिभक्त एक जैसी ही पोशाक पहन कर कार्यक्रम में शामिल होंगे। दिगंबर जैन धर्म प्रभावना चातुर्मास समिति द्वारा लोकेंद्र भवन में मुनिश्री 108 प्रमाण सागरजी व मुनिश्री 108 विराटसागरजी महाराज के सान्निध्य में स्वतंत्रता दिवस पर विशेष आयोजन होगा।
दिगंबर जैन धर्म प्रभावना चातुर्मास समिति द्वारा लोकेंद्र भवन में आयोजित चातुर्मास में मुनिश्री 108 प्रमाण सागरजी ने कहा आज हर कोई तनाव में नजर आता है। तनाव भरी जिंदगी के कारण लोग धर्म और कर्म के पथ से भटक कर जीवन को उस मोड़ पर लेकर खड़े हैं जहां एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई है। विषम परिस्थितियों के बीच खुद को पराजित मानने वाले लोग आशावादी बने, धैर्य और धीरज से नए रास्ते का उदय करें। जीवन में आई हताशा, निराशा और तनाव को आपकी आशावादी और सकारात्मक सोच जिंदादिली से जीने सिखा देगी। उन्होंने कहा मानव जीवन में कई उतार और चढ़ाव आते हैं लेकिन हमें गिरना नहीं है गिरकर संभलना सीखना चाहिए। गिरना नहीं है जिंदगी, गिर कर संभलने का नाम ही जिंदगी है। यदि हमने विषम परिस्थितियों को हराने के लिए मन में नई आशा का संचार कर लिया तो निश्चित मान कर चलिए आप जीवन का उत्कर्ष करने में समर्थ हो जाएंगे। अगर आप इस क्षणिक दुख के समय डगमगा गए तो जीवन नश्वर हो जाएगा।
मुसीबत में थोड़ा रुको और सोचो
मुनिश्री प्रमाण सागरजी ने कहा मुसीबत और जीवन में आई विपत्ति के समय थोड़ा रुको, सोचो-विचार करो और मानों की हम इसका डटकर मुकाबला करेंगे। जरा-सा धीरज व्यक्ति को बलवान बना देता है और थोड़ी-सी अधीरता आदमी को निर्बल बना देती है। विपत्तियों के समय रखा धीरज उस सुबह के समान है जो कालीरात को चीर कर नई सुबह का उदय करता है। मन में विश्वास रखो कि बुरा हुआ है तो अच्छा और बेहतर होना ही है।
आशावादी होना जरूरी है
मुनिश्री ने कहा आदमी को आशावादी होना बहुत ही जरुरी है। हमें प्राब्लम में उलझने की बजाय उसका सेल्यूशन ढूंढना चाहिए। संकट के समय अगर में निराशा घर कर गई तो इसे हल करने के सारे दरवाजे बंद हो जाएंगे। इन निराशावादी दरवाजों को खोलने के लिए आशावादी बनो। अगर इंसान बुरे को छोड़ कर अच्छा होने की सकारात्मक सोच ही अपना ले तो कई विपत्तियों इससे दूर भाग जाएगी।