उत्तम शौच धर्म प्रगट होते ही लोभ प्रवर्ती रुक जाती है - ऐलकश्री सिद्धांत सागर

सचिन मोदी खनियांधाना - लालसाएं व्यसनो को जन्म देती है एंव मानवता की सदभावनाओ को नष्ट करती है। लालसा मनुष्य में कई तरह की हुआ करती हैं , उसमें भोजन की लालसा , पद प्राप्ति की लालसा एवं काम-वासना जैसी लालसाएं , लालच हर स्तर के पाप उत्पन्न करती है। लालच से भरा हुआ मन प्रभु भक्ति की पवित्र भावना को नष्ट कर देता है । यह प्रवचन नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर जी मैं विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी के परम प्रभावक शिष्य ऐलक श्री सिद्धांत सागर जी महाराज ने दशलक्षण महापर्व के चौथे दिन उत्तम शौच धर्म की व्याख्या करते हुए व्यक्त किए।
उत्तम शौच धर्म पर प्रवचन करते हुए आगे कहा कि लोभ और लालच एक ऐसी दुष्प्रवृत्ति है जो सद्भावना के सब्जबाग को नष्ट कर देती है। प्रेम और मैत्री से बने हुए पवित्र रिश्ते लोभ के द्वारा अपवित्र हो जाते है ।बलात्कार,चोरी,डकैती जैसे अपराध लोभ की दुर्भावना के परिणाम हैं। हिंसा ,झूठ ,चोरी ,कुशील और परिग्रह जैसे सभी पाप को विस्तार देने वाला लोभी होता है। धर्म ग्रंथों में लोभ को पाप का बाप कहा गया है। लोभी व्यक्ति गंगा के जल से नहाने के बाद भी पवित्र नहीं होता है।
लोभ को मानवता का शत्रु सिद्ध करते हुए ऐलक श्री ने कहा सत्ता के लोलुपी  व्यक्ति युद्ध के बिगुल बजाते हुए नजर आते हैं और सत्ता विस्तार के लिए मानवीय अत्याचार करने से भी नहीं चूकते है। युद्ध में होने वाला खून-खराबा, गरीब बेगुनाहों के साथ होने वाला अत्याचार, कमजोर महिलाओं की बनती दयनीय स्थिति के लिए जिम्मेदार सत्ता लोलुपी लोग ही होते हैं। सत्ता में बने रहने के लिए आतंकवाद को बढ़ावा देने से भी राजनेता नहीं चूकते हैं। सत्ता के रूप में सिद्धांतों को एक ताक में रख दिया जाता है। दया,प्रेम और भाईचारा लोभी व्यक्ति के लिए कोई मायने नहीं रखता है।

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