अभिषेक जैन ललितपुर-नगर के स्टेशन रोड स्थित क्षेत्रपाल मंदिर मे विराजित विश्व वन्दनीय आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज ने प्रवचन का प्रारभ बुन्देली भाषा से की कहा
वह न तनक -सा है न मनक सा है है! अर्थ है पता है न आपको इसका अर्थ होता है थोडा सा अपने स्वभाव की और देखना और न तनक मनक सा उसकी जिसको भनक होती है वाही देख सकता है
आचार्य श्री ने समझाया लोहा एक धातु और स्वर्ण भी एक धातु है और दोनों मे बहुत अंतर है लोहा कीचड मे गिर गया तो बह गया ऐसे ही हमे जैसा हवा पानी मिल जाये तो सब अपना रूप बदलना शुरू कर देते है कीचड मेगिरा वह लोहा जंग खा जाता है और उसकी दशा बुरी हो जाती है क्योकि वह पर को अपनाता है जो मोह के साथ रहता है वह न तो स्वयं रहता है न ही पर मे रहता है
आचार्य श्री ने कहा की सोना ज़मीन पर रख देते हो तो उसे कभी कुछ नहीं होता है क्योकि वह कभी दुसरो को पकड़ता नहीं है लोहे की दिशा विपरीत होती है जंग लग जाती है
लोहा और स्वर्ण एक धातु है लेकिन दोनों मे काफी अंतर आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज
0
Saturday, November 24, 2018
Tags