मन-वचन की शुद्धि के बिना आत्मा के स्वरूप की पहचान होना असंभव मुनिश्री विद्यासागर जी

अभिषेक जैन भोपाल-आचरण में सरलता मन, वचन व काया की शुद्धि के बिना आत्मा को समझना आत्मा की बात करना आत्म कल्याण का मार्ग देख पाना असंभव है। यह विचार मुनिश्री विद्यासागरजी महाराज ने नंदीश्वर जिनालय लालघाटी में व्यक्त किए। वे मंगलवार को यहां धर्मसभा में प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने कहा कि कहा कि हम जिज्ञासु श्रावकोंं को ही ज्ञान की बात समझाना चाहते हैं, क्योंकि जो जिज्ञासु नहीं है वह ज्ञान की बातें समझ ही नहीं सकता।
मुनिश्री ने कहा कि जिस प्रकार जंग लगा लोहा पारस के संपर्क में आकर भी सोना नहीं बन सकता, उसी प्रकार अज्ञानी व्यक्ति कितना भी गुरु के संपर्क में रहे पर ज्ञान को सही ढंग से परिभाषित नहीं कर पाएगा। लोहे से जंग हटाना आवश्यक है वैसे ही आत्मा को समझने से पहले मन, वचन व काया की शुद्धि करना जरूरी है। आत्म कल्याण के मार्ग पर चलने से पहले आत्मा के सही स्वरूप को समझना है पहली शर्त यही है। मन में सहज, सरल परिणामों को धारण कर श्रेष्ठी श्रावक बनना होगा। मुनिश्री ने कहा कि प्रेरक तो सभी बनना चाहते हैं, लेकिन प्रेरणा ग्रहण नहीं करते।
   

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