लोग उसी वृक्ष पर पत्थर मारते है जहां फल लगते है: मुनिश्री समयसागर

अभिषेक जैन बीना -हे आत्मा! तुम्हारी आलोचना यदि हो रही है तो यकीनन उन आलोचकों से हटकर तुमने कुछ विशेष हासिल कर लिया है। तभी तो उन्होंने अपने लोचन को तुम्हारी तरफ कर दिया है। लोग उसी वृक्ष पर पत्थर मारते हैं, जिस पर फल लगते हैं। कुछ तो तुमने ऐसा हासिल कर लिया है जिसकी प्रशंसा वह अपने दिशात्मक शब्दों में कर रहा है।
स्वयं अकेले अपने आपको इतना परिमार्जित नहीं कर पाते जितना आलोचक के समागम से जीवन परिमार्जित होता जाता है। क्योंकि अपनी दृष्टि अपने गुणों पर रहती है, किंतु आलोचक की वजह से सूक्ष्म से सूक्ष्मतम जो तेरी गलती ढूंढ़ने में लगा है, उससे छोटी से छोटी गलती भी दिख जाएगी। यह प्रवचन सोमवार को इटावा जैन मंदिर में विराजमान मुनिश्री समय सागर महाराज ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहें।
  

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