आंखों में रोशनी ही नहीं तो अच्छे से अच्छा चश्मा लगाने से क्या होगा: अाचार्यश्री

खुरई-जब एक त्रियंच जीव माता सीताजी की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे सकता है तो हम क्यों प्राणी मात्र की रक्षा नहीं कर सकते। हे आत्मन! बीज नहीं है तो जलधार बहाने से क्या होगा, जिसमें प्राण ही नहीं उसे श्रृंगारित करने से क्या होगा। जिसका मूल नहीं उसका चूल कैसे संभव है? उपादान ही नहीं तो निमित्त क्या करेगा। आंखों में रोशनी ही नहीं तो अच्छे से अच्छा चश्मा लगाने से क्या होगा। इसमें बड़े से बड़ा आंखों का चिकित्सक भी कुछ नहीं कर सकता। जिसके पास भव्यत्व नाम का पारिणामिक भाव ही नहीं है उसे कितनी ही महान आत्माओं का सानिध्य मिले वह सम्यक्त्व का उजाला नहीं पा सकता। जिसे आत्म रुचि ही नहीं वह स्वानुभूति की दिशा में जा ही नहीं सकता।
सर्वप्रथम लक्ष्य का निर्धारण हो फिर लगन हो और यदि अंत में लक्ष्य की ओर गमन हो तो मंजिल प्राप्त हो सकती है। यह बात गुरूकुल लाल मंदिर के परिसर में रविवारीय प्रवचन देते हुए आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ने जटायु पक्षी के समर्पण एवं बलिदान की व्याख्या करते हुए कही। उन्हाेंने कहा कि तुम अभी तक मिथ्यादृष्टि इसलिए नहीं रहे कि तुम्हें किसी ने समझाया नहीं, तत्व ज्ञान कराया नहीं बल्कि तुम स्वयं समझने को तैयार नहीं थे। जिसका उपादान तैयार है वह नरकों में भी हर तरफ से प्रतिकूलता होने पर भी समकित पा लेता है और दूसरी तरफ स्वर्ग में प्रत्येक सुविधाओं को पाकर भी अज्ञ प्राणी उपादान जागृत न होने से सम्यक्त्व से दूर रहता है। कुसंगति में पड़कर, गृहीत मिथ्यात्व का पोषण कर संसार का वर्द्धन करता रहता है।
सच ही कहा है कि रुचि के अनुसार ही आत्मा की शक्ति कार्य करती है। रुचि जगाने के लिए स्वयं का ही पुरुषार्थ चाहिए अपने परिणामों की परिणति को पल-पल जांचने की आवश्यकता है। उन्हाेंने कहा कि आहारदान का भी बहुत महत्व है।
जंगल में मंगल होते देखा गया है परंतु आप लोग महलों में रहकर भी रोते रहते हो। यही ताे परिणामाें की बात है, शुभ भावाें से परिणाम भी शुभ हाेते हैं। भावाें में निर्मलता लाना जरूरी है।
     संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.