कक्का के नहीं हुए राजा - महाराजा और नाथ




राजनीतिक हलचल-15 साल का वनवास पूरा कर कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में खुशी के दिए जलाकर जोड़ तोड़कर सरकार तो बना ली लेकिन कांग्रेस कभी अपनों से तो कभी उनसे जिनके सहारे सरकार बनाई है दबाब में रही है । अध्यक्ष, उपाध्यक्ष सहित मंत्री बनाने और विभागों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस चीफ और सूबे की राजनीति के नाथ भोपाल से दिल्ली भागमभाग करते नज़र आये । कहने को तो राजा और महाराज सहित नाथ की तिकड़ी ही है जो हर काम में रायशुमारी कर रही है लेकिन किसका पलड़ा कितना भारी है ये भी जगजाहिर है ।

मंत्री बनने के वरिष्ठता को बरीयता दी जाती है और जातिगत, क्षेत्र और वर्ग को भी ध्यान में रखा जाता है और हुआ भी यही , लेकिन बात जब शिवपुरी जिले की पिछोर सीट से अजेय  6 बार के विधायक और कद्दावर नेता केपी सिंह उर्फ कक्काजू की आयी तो न केवल सब कुछ भूल गए बल्कि उन सभी राजनीतिक पंडितों के गुणा भाग का परिणाम शून्य कर दिया जो कक्का को कैबिनेट मंत्री ही नहीं बल्कि अहम विभाग मिलने का दावा ठोक रहे थे । केपी सिंह वो अजेय योद्धा हैं जो न तो शिवराज की आँधी में हिले और न मोदी लहर में डिगे और 6 बार से लगातार जनता का आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं । पहले मंत्रिमंडल फिर विधानसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष में कक्का का नाम न पाकर उनके समर्थकों में निराशा इतनी कि उन्होंने पार्टी के सामने अपना विरोध प्रदर्शन भी किया ।
कक्का के साथ ऐसा कैसे और क्यों हुआ इसका अनुमान कोई नहीं लगा पा रहा है, कोई राजा की चाल बताता है तो कोई महाराजा की शाजिस लेकिन राजा और महाराजा के वर्चस्व की लड़ाई में शहीद हुए कक्का को नाथ ने भी अनाथ कर दिया , कहने वाले तो अब भी कह रहे हैं कि मंत्रिमंडल विस्तार में कक्का का मंत्री बनना तय है लेकिन कैसे इस बात का जवाब किसी के पास नहीं है । सहयोगी दल सपा और बसपा पहले से ही नाराज है ऐसे में उनको साधना भी है तो निर्दलीय शेरा भी दहाड़ कर ये जताना चाह रहे हैं कि हमारे बिना नाथ की सरकार डगमगा जाएगी ऐसे में उनको भी तवज्जों देना है तो इनको साधने में अपने वंचित रह सकते हैं तो फिर कक्काजू के साथ क्या सलूक होगा ये तो आने वाले भविष्य में ही पता चलेगा लेकिन कक्काजू को मंत्री न बनाकर सरकार और संगठन ने अच्छा नहीं किया है ।

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