खुरई-आप बताओ मैं तो सुनाता ही रहता हूं। एकाध बार सुन भी तो लूं। हमारे भगवान 24 हुए हैं अंतिम महावीर स्वामी का तीर्थंकाल चल रहा है, सुन रहे हो। हओ। ऋषभनाथ भगवान का समोशरण 12 योजन का था जो पुण्य कम होने से धीरे-धीरे आधा-आधा योजन घटता गया और भगवान महावीर स्वामी का एक योजन रह गया।
यूं कहना चाहिए वृषभनाथ भगवान बड़े बाबा तो महावीर भगवान हमारे छोटे बाबा हैं। यह बात साेमवार काे नवीन जैन मंदिर के मंगलधाम परिसर में प्रवचन देते हुए अाचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कही।
उन्हाेंने कहा कि शब्द में प्रयोजन नहीं लेकिन अर्थ में प्रयोजन हुआ करता है। शब्द जड़ होता है। संकेत के लिए काम आता है शब्द। संकेत गौण कैसा। जो इष्ट होता है उसे प्राप्त करना होता है। प्राप्ति हेतु साधन जुटाए जाते हैं। साधन अपने आप ही नहीं मिल जाते किंतु इतना अवश्य है कि जब प्रयोजन को सामने देखते हैं तो बाकी सभी गायब हो जाते हैं। वृषभनाथ एवं महावीर का रास्ता भी शब्द की अपेक्षा पृथक-पृथक हो गए। रह गया केवल इष्ट को जाने वाला मैं ही-मैं ही करने वाला, मैं ही करने वाला न ही भगवान में लीन होता है, न ही लोक में लीन होता है। भगवान सामने है वह व्यवहार है उसमें हम अपने को खोज नहीं सकते। उसमें देखने से यहां का वैभव दिखने लग जाता है। इतना ही नहीं उसमें देखने से अड़ोस-पड़ोस, ऊपर-नीचे सब गायब हो जाता है। आचार्यश्री ने कहा कि संघर्ष जहां भी होता है वह मेरा-तेरा से होता है इसलिए कभी-कभी यह भी प्रयोग हमने किया। एक व्यक्ति के लिए कह दिया तो गड़बड़ भी हो सकता है।
महाराज ने उसी ओर क्यों देखा। हमने सोचा इसका प्रयोग न करके दूसरी तरफ से चलें तो दोनों बच जाएंगे और हम का प्रयोग किया। हमने इसमें दोनों आ जाते हैं हमने बोलने से मैं छूटता भी नहीं। उन्होंने कहा कि हममें मैं सुरक्षित है, सरकार भी चिंता कर रही है गरीब, सवर्णाें की। ये संख्या कितनी पता ही नहीं। ऐसी चिंता करो जिससे सबका उद्धार हो जाए इसलिए मैत्री में सव्वभूतेसु कहा। इस जगत में जितने भी जीव हैं सभी में मैत्रीभाव रहे। यदि सबके प्रति पक्ष-विपक्ष का भाव गौण कर दिया जाए तो राष्ट्रीय पक्ष हो जाए। हम अधिक पढ़े लिखे हैं कम समझदार। इसमें भी हम आ गया, किसी को छोड़ा नहीं।
आचार्यश्री ने व्यंग्य करते हुए कहा कि वर्तमान समय में कई लोग तो महावीर स्वामी की आयु को भी लांघ गए हैं। आप ही बताओ लंबी-लंबी आयु अच्छी नहीं। छोटा होता है तो ठीक है बड़े हो तो अकेले रह जाओगे। बहुत कठिन होता है जहां हम होता है वहां अहं आ जाता है। जो हम को समाप्त कर रहा है वह अहं को भी समाप्त कर देगा।
उन्हाेंने कहा कि भगवान ऋषभनाथ की काया 500 धनुष की थी, वर्तमान में घटते-घटते वह काफी कम रह गई परंतु केवल ज्ञान सबका समान है। तुलनात्मक शब्द हमें भेद की ओर ले जाते हैं इसलिए हम किसी से भी किसी की तुलना न करें। हम भी ठीक रहें आप भी ठीक रहें यह भावना भाते रहें। बुंदेलखंडी शब्दों की विशेषता है कि मैं ही मैं ही को हटा दो। मैं ही की अपेक्षा हम ही कह दो तो सब आ जाएंगे। प्रवचन के पूर्व आचार्यश्री विद्यासागर महाराज की पूजन संपन्न हुई।
पं. रतनलाल बैनाड़ा के नेतृत्व में 200 छात्रों ने आशीर्वाद लिया-राजस्थान के सांगानेर से आए विद्वान पं. रतनलाल बैनाड़ा के नेतृत्व में मोक्षमार्गी 200 छात्रों ने आचार्यश्री विद्यासागर महाराज के समस्त संघ को श्रीफल भेंट कर आशीर्वाद लिया। सभी छात्र सांगनेर में अध्ययन करते हैं। आचार्यश्री विद्यासागर महाराज को पडगाहन कर आहारदान देने का सौभाग्य भी सांगानेर से पधारे पं. रतनलाल बैनाड़ा, राजेन्द्र कुमार हिरणछिपा वालों को प्राप्त हुआ। समस्त छात्रों ने आचार्यश्री का पद प्रक्षालन कर गंधोदक अपने माथे पर लगाकर पुण्यार्जन किया।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी