जन्म-जन्मांतराें के पुण्य के संचय से तीर्थंकर प्रकृति का बंध हाेता है मुनि श्री




आष्टा-मुनि श्री  प्रशांत सागरजी, निर्वेग सागरजी, विशद सागरजी महाराज व क्षुल्लक श्री देवानंद सागर जी महाराज  ने कहा कि अनेक जन्म जन्मांतरों के पुण्य संचय से तीर्थंकर प्रकृति का बंध होता है। पंच कल्याणक में भगवान के गर्भावतरण, जन्म, तप, ज्ञान ओर फिर मोक्ष कल्याणक की क्रियाओं को पुण्य किया जाता है। सभी क्रियाएं विवेक पूर्ण ढंग से करना आवश्यक हैं। जिस प्रकार पंचकल्याणक से सभी प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हो जाती हैं ऐसे ही हमें भी अपने अंदर इस महोत्सव से प्रेरणा लेकर परिवर्तन करने होंंगे। तभी महोत्सव सार्थक होगा। पंच कल्याणक आत्म कल्याण का उत्कृष्ठ निमित्त है। मुनिश्री ने आगे कहा कि तीर्थकर ऐसे महापुरुष हैं जिन्होंने आचार, विचार के साथ प्रत्येक कार्य में विवेक के उपयोग का उद्देश्य दिया। उन्होंने बालिकाओं को विशेष रूप से संस्कारवान बनाने का उद्देश्य देते हुए कहा कि बेटियों का संरक्षण जरूरी हैं ओर उससे भी ज्यादा आवश्यक है कि उन्हें कुल का गौरव बढ़ाने के लिए हमारी संस्कृति से जोड़ा जाए।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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