जहां छल कपट है, वहां धर्म नहीं हो सकता: मुनिश्रीविश्रांतसागरजी महाराज



बूंदी-मुनिश्री विश्रांतसागर जी महाराज ने कहा है कि कुछ लोग छल कपट कर दूसरों को ठगने का प्रयास करते है, परन्तु वे दूसरों को नहीं, बल्कि स्वयं के द्वारा स्वयं ठगे जाते हैं, जहां पर छल होता है, वहां धर्म नहीं होता है और जहां पर धर्म होता है, वहां छल नहीं हो सकता है, जहां पर रात्रि है तो दिन नहीं है और जहां पर दिन है तो समझ लो वहां पर रात्रि नहीं है, जैसे दिन और रात्रि एक साथ नहीं हो सकते हैं, वैसे ही छल और धर्म एक साथ नहीं हो सकते हैं। यदि छल है तो वहां धर्म हो ही नहीं सकता है। धर्म की क्रियाएं हो सकती है, जैसे रात्रि में सूर्य का प्रकाश नहीं रहता है, कृत्रिम प्रकाश तो रह सकता है।
मुनिश्री बुधवार को शहर की मधुबन कॉलोनी में धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मुनिश्री ने कहा कि आज आप छल करके अपने भाई से अपने पिता से, अपने पुत्र से अपनी मां से, अपने गुरु से बच सकते हैं, परंतु कर्म से बचकर नहीं जा सकते है। छल कपट से रहित होकर धर्म करो तो शाश्वत सुख की प्राप्ति हो जाएगी। संसार शरीर भोगों से विरक्त जीव ही आत्म कल्याण की भावना रखता है, जिसे संसार शरीर भोगों से वैराग्य नहीं है, उसकी आत्म कल्याण की इच्छा नहीं होती है, बल्कि शरीर को चमकाने में लगा रहता है। संसार के भोगों को निरंतर चाहता है।
मुनिश्री ने कहा कि जिस जीव को आत्मज्ञान हो जाता है, उसे सुलभता से प्राप्त भोग रुचिकर नहीं लगते, बल्कि उन भोगों से अरुचि हो जाती है। आत्मकल्याण की ही भावना निरंतर बनी रहती है। जिस जीव को विषय भोग रुचिकर लगते हैं तो इसका अर्थ है कि उसकी आत्मकल्याण की भावना वाले जीव को विषय भोग रुचिकर नहीं लगते हैं, बल्कि भगवान की पूजा, गुरु की सेवा, दान, ध्यान रुचिकर लगते हैं।
सामूहिक रूप से मनाई मेहंदी रस्म
सभा से पूर्व मंगलाचरण साक्षी धानोत्या-दीपिका धानोत्या ने किया। दोपहर में पंचकल्याणक में बनने वाले सभी पात्रों की मेहंदी रस्म सामूहिक रूप से मनाई गई। इसमें सकल दिगंबर जैन समाज की महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। भक्ति गीतों पर नृत्य करती महिलाओं ने सभी सौभाग्यशाली पात्रों को मेहंदी लगाई।
पंच कल्याणक महोत्सव कल से:
चकल्याणक महोत्सव का आयोजन रतन विलास गार्डन लंकागेट में 25 जनवरी से होगा।
          संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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