चिंतन अच्छा है तो मन भी अच्छा होगा: विमर्श सागर जी



दुर्ग-मन कभी फूलों की सेज है, कभी काटों का बिस्तर। मन कभी परमात्मा की प्रतिमा है, कभी खान का प्रस्तर। आदमी का मन सदैव चिंतन और मनन की पीठ पर बैठ सैर करता है।
यदि चिंतन अच्छा है, तो मन भी अच्छा होगा और यदि उसमें खोट है, तो अच्छे मन की कामना बेमानी है। यह बातें दुर्ग के जैन बड़ा मंदिर में चल रहे ग्रीष्मकालीन वाचना में शनिवार को आचार्य श्री  विमर्श सागर जी महाराज  ने कही। उन्होंने कहा कि मन का परिवर्तन सच्चे अर्थों में जीव का परिवर्तन है। मन में जब अच्छे विचार उठते है तो जीवन अच्छा बनने लगता है, लेकिन जब बुरे विचार पनपते हैं तो जीवन बुरा होने लगता है। अच्छे-बुरे विचारों का ज्ञान समयदृष्टि ही कर पाता है। अच्छे विचार सदैव अपने हित के साथ दूसरों का भी हित करना चाहते हैं।
अज्ञानी जीवों की दो श्रेणी होती है प्रथम वे जो दूसरो का सिर्फ अहित करना जानते हैं और दूसरे वे जो सिर्फ अपना भला करना जानते हैं। इसका ध्यान रखना चाहिए।
  रामगंजमंडी के भक्तो ने लिया आशीष
राजस्थान के रामगंजमंडी से भी  भक्तो का समूह आचार्य संघ के दर्शन हेतु गया हुआ है जो विगत तीन चारो दिनो से संघ सेवा मे तत्पर है वहा रहकर यह समूह चोका लगा रहा है जिसकी भरी भूरी प्रशंसा हो रही है और आचार्य गुरुवर का आशीष मिल  रहा है  इस समुह मे रमेश विनायका महावीर गर्ग प्रकाश चेलावत ललिता विनायका शकुंतला मित्तल मनोरमा बाकलीवाल सुलोचना लुहाड़ीया सम्मलित है
     संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.