जीवन में दया औरअहिंसा जरूरी,आर्यिका विज्ञाश्री माताजी ने कहा, धर्म के माध्यम से जीवन काे सार्थक बनाएं



मदनगंज किशनगढ. आर्यिका विज्ञाश्री माताजी  ने शनिवार को जैन भवन में पत्रकार सम्मेलन में कहा कि जीवन सफल बनाना है तो व्यापारी नही हलवाई बनना चाहिए। व्यापारी यदि मावे में मिलावट करता है तो उसे जेल होती है लेकिन हलवाई मिलावट करता है तो मिठाई स्वादिष्ट बनती है और वह कलाकार कहलाता है।
उन्होंने कहा कि मनुष्य को भी अपने जीवन में धार्मिक क्रियाओं को अपनाकर भगवान बनने की ओर बढ़ना चाहिए। साधु-संत भी श्रावकों की तरह सभी क्रियाएं करते हैं लेकिन साधु-संत पंच परमेष्ठी की साधना व धर्म के मार्ग पर चलकर कलाकार बन गए हैं। मनुष्य अपने जीवन में सत्य, दया, अंहिसा, ब्रह्मचर्य सहित विभिन्न धार्मिक क्रियाओं से जीवन को सार्थक कर सकता है लेकिन वह हिंसा, चोरी, झूठ, परिग्रह आदि को अपना रहा है तो विनाश की ओर बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि पत्रकार व महापुरुष धर्म की वाणी को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य करते हुए पुण्य संचय कर रहे हैं। पत्थर को मूर्ति बनने के लिए छैनी, हथाैड़ी की चोट खानी पड़ती है उसी प्रकार मनुष्य को महापुरुष व भगवान बनने के लिए साधु-संत बनना पड़ता है। उन्होंने कहा कि साधु के 28 मूल गुणों में एक समय भोजन करना, पैदल चलना, केश लोचन करना, दवाई नही लेना आदि प्रमुख है। जब तक दया, अहिंसा है तब तक संसार में जीवन चक्र चलता रहेगा। राजनीति माया का रूप है।
          संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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