मदनगंज किशनगढ़-आर्यिका विज्ञाश्री माताजी ने कहा कि, जन्म के साथ ही मृत्यु की यात्रा भी शुरू हो जाती है। मृत्यु के साथ ही पुनर्जन्म की यात्रा और जहां जन्म है वहां मृत्यु भी है। माता श्री ने कहा कि जहां संयोग है वही वियोग है। जहां सुख वहां दुख है।
जैन भवन में बुधवार को प्रवचन देते हुए उन्हाेंने कहा कि जहां सम्मान वहीं अपमान है। जहां खिलना है वहां मुरझाना भी है। जहां बचपन है, वहां बुढ़ापा भी है। समय का यह शाश्वत कर्म है। जहां कारण है वहां कार्य अवश्य होगा। इसलिए मनुष्य के जन्म के साथ ही मृत्यु की यात्रा प्रारंभ हो जाती है। माना कि जन्म के कई वर्षों बाद मृत्यु होगी लेकिन यात्रा तो जन्म के साथ ही शुरू हो जाती है। जीवन तो जन्म से मृत्यु के बीच का पड़ाव है। जहां से रवाना होकर वहां तक पहुंचना है। माता श्री ने कहा कि मृत्यु और कुछ नहीं समय का चक्र जाना ही है। जन्म और मृत्यु समय का मुखरित रुप है। माताश्री ने कहा कि समय ही एक ऐसा तत्व है जिसकी कभी मृत्यु नहीं होती। इसलिए सदा समय का सदुपयोग करो। जन्म व मृत्यु के बीच का समय ही आत्मकथा है। समय के अनुसार सभी ढल जाते है मगर कभी समय नहीं ढलता, यह निरंतर अपनी गति से चलता रहता है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
जैन भवन में बुधवार को प्रवचन देते हुए उन्हाेंने कहा कि जहां सम्मान वहीं अपमान है। जहां खिलना है वहां मुरझाना भी है। जहां बचपन है, वहां बुढ़ापा भी है। समय का यह शाश्वत कर्म है। जहां कारण है वहां कार्य अवश्य होगा। इसलिए मनुष्य के जन्म के साथ ही मृत्यु की यात्रा प्रारंभ हो जाती है। माना कि जन्म के कई वर्षों बाद मृत्यु होगी लेकिन यात्रा तो जन्म के साथ ही शुरू हो जाती है। जीवन तो जन्म से मृत्यु के बीच का पड़ाव है। जहां से रवाना होकर वहां तक पहुंचना है। माता श्री ने कहा कि मृत्यु और कुछ नहीं समय का चक्र जाना ही है। जन्म और मृत्यु समय का मुखरित रुप है। माताश्री ने कहा कि समय ही एक ऐसा तत्व है जिसकी कभी मृत्यु नहीं होती। इसलिए सदा समय का सदुपयोग करो। जन्म व मृत्यु के बीच का समय ही आत्मकथा है। समय के अनुसार सभी ढल जाते है मगर कभी समय नहीं ढलता, यह निरंतर अपनी गति से चलता रहता है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
