शिवपुरी-पूज्य 'पापाजी'को अनंत काल की अंतिम यात्रा पर गये आज 16 दिन हो गये..।परिवार के लिये सदी से तकरीबन डेढ़ दशक कम की संघर्ष यात्रा में "पापाजी" पीढ़ियों के लिये अपने आशीर्वाद के रूप में "बट बृक्ष"की अमिट निशानी दे गये जिसकी घनी छाव में यह परिवार उनके बिना भी पल्लवित हो सकेगा..।यू तो अपने जीवनकाल में "पापाजी" ने हज़ारो पोधो को रोपकर पेड़ बनाया,मुझ मंदबुद्धि के ह्रदय में पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रेम पैदा किया किन्तु यह बटबृक्ष कुछ खास ही रहा..।*
*गुना "में 28 साल पहले अपनी सेवाकाल के दौरान यह पौधा उनकी जीर्ण शीर्ण शरणस्थली की टूटी-फूटी दीवार में उग आया था जिसे वह करीने ने निकालकर बस से "शिवपुरी"ले आये थे ओर घर के सामने पड़े खाली स्थान में रोप दिया था।मुझे याद है कि तब पापाजी ने सेवा काल की 'यायावर जिंदगी' के बीच परिवार के सिर छुपाने के लिये विपरीत परिस्थितियों में भी हाउसिंग बोर्ड से किस्तो पर यह आसरा क्रय किया था।धुंधली स्मृतियों में मुझे याद है कि नवरोपित इस "बटबृक्ष" को जानवरों से बचाने के लिये घरौंदा बनाने हेतु संकलित किये गये पत्थरो को ढूंढकर लाने में हमने,बड़े भैया ने (जो पहले ही मृत्युलोक से विचरण कर गये..)तीनो बहनों ने व चाचाजी ने उनका हाँथ बटाया था।फिर शुरू हुआ उनका सुबह शाम पानी देने व समय समय पर गोबर की खाद देने का क्रम,...!*
*पापाजी का प्रेम पाकर अनजान शहर का वह नवांकुरित पौधा नये शहर 'शिवपुरी"में देखते ही देखते बढ़ने लगा।उसकी नव अंकुरित कोपलों को जानवरों से बचाने के लिये घरोंदे का आकार भी बढ़ने लगा।कोई जानवर ऊपर से मुँह डालकर किसी कोंपल को आहत न कर दे इसलिये घरोंदे के ऊपर रखे गये बेरी के कांटो को भी प्रतिदिन करीने से रखना भी पापाजी की दिनचर्या का ही हिस्सा रहा जिसमे काटे लगने से वे अक्सर ज़ख्मी होते थे और हांथो में लगे कटीले कांटो के अवशेषों को सुई की तीखी नोक से कुरेद कुरेद कर निकालते थे।तमाम मर्तवा इस कशमकश में मम्मीजी को भी उनके हांथो पर सुई कुरेदनी पड़ती थी जिसमे अक्सर खून तक निकल आता था।'पापाजी' कहते थे कि पौधे ऐसे ही नही पलते.., उन्हें बच्चो की तरह ही पाला जाता है,उनकी देखरेख की जाती है..!(हालांकि इस बात का अर्थ मुझ नासमझ को अब समझ आया है....)*
*खैर, देखते देखते हम परिवारीजनों के साथ-साथ यह "बटबृक्ष भी बढ़ता चला गया।हमारी ही तरह इसके लालन-पालन में भी "पापाजी"ने कोई कोताही नही बरती।दायित्व निर्वहन की श्रंखला में हम सब की शादियां,बंश की बृद्धि,परिवार के हर सुख-दुख का यह सदैव साक्षी रहा।यदि शादियों के बाद बहने घर से विदा हुई तो हर बार पापाजी के इस बट बृक्ष ने अपनी बाह नई कोपलों के साथ खोली ओर घर मे आई बहुओ को अपनी छत्रछाया में लिया।इसके नीचे बना तत्कालीन कच्चा चबूतरा पूज्य दादाजी(जो अब नही है..)की साधना स्थली बना।*
*दिन गुजरते गये,हमारे व अन्य पोधो की तरह "बट बृक्ष भी बढ़ता गया और आज 28 साल का युवा पेड़ बन गया।उसकी शाखाये ठीक पापाजी की तरह ही विपरीत मौसमो से इस परिवार की रक्षा के लिये ढाल बनकर खड़ी हो गयी...!तमाम जीव जंतुओं ,पक्षियों ने उसे अपना स्थायी -अस्थायी ठिकाना बना लिया।*
*जीवन के उतार चढ़ाव के बीच सब कुछ ठीक था किंतु 16 दिन पहले अचानक एक तूफान आया जिसमे पापाजी हम सब को छोड़कर चले गये।हम रोये,बिलबिलाए किन्तु....!यही अंतिम सत्य था...!मृत्यु लोक की इस सत्यता को साकार होना ही था सो हो गयी...!!पापाजी हम सबसे दूर,बहुत दूर,अनंत यात्रा के लिये प्रस्थान कर गये...!!एक समय पापाजी ने बट बृक्ष को आसरा देकर नया जीवन दिया था,उस दिन वही बट बृक्ष उनकी पार्थिव देह को धूप से बचाने के लिये तनकर खड़ा रहा।उसी ने विसर्जन से पूर्व उनकी अस्थियो को अपनी गोद मे रखा।यकीनन वह भी रोता रहा होगा...!यकीनन उसने भी पापाजी को आश्वस्त किया होगा उनके ही स्वरूप में पीढ़ियों तक इस परिवार को अपनी क्षत्रछाया में रखने के लिये....!उनकी यादों को चिरस्थायी बनाये रखने के लिये...!!*
*आज "पूज्य पापाजी"सशरीर नही है किंतु "बट बृक्ष"के रूप में उनका आशीर्वाद अमिट रूप से पीढ़ियों तक के लिये हम सबके साथ प्रत्यक्ष स्वरूप में है...!*
*उनके जीवन के 85 वर्षों के दौरान आये प्रत्येक दिन से अधिक पौधे तो हम उनके जीतेजी रोपित कर ही चुके है किन्तु अब यह संकल्प ओर अधिक दृढ़ हो गया है कि मृत्यु लोक में उनकी सशरीर उपस्थिति के प्रत्येक घण्टे,मिनिट को भी आजीवन पौधे लगाकर,बचाकर संरक्षित ,अमिट, चिरस्थायी करुगा...।हमारे द्वारा रोपित हर पौधा अब उनकी यादगार होगा..!*
*"पापाजी,आप सदैव मेरे प्रेरणा स्त्रोत थे,हो और आजीवन रहोगे...!हम कभी आपको भुला नही पायेंगे।आपके द्वारा सींचा गया हर पौधा-पेड़ सदा हमारी स्मृतियों को आपकी खुशबू से महकायेगा..!*
Miss u papa...!
*अनंत यात्रा के लिये अशेष शुभकामनाये...!हे दिव्यात्मा,सदैव अपना आशीर्वाद बनाये रखना...!*
*नमन_श्रद्धासुमन....!!*
*आप_बहुत_याद_आओगे_पापाजी"$$$$$$$$*
*गुना "में 28 साल पहले अपनी सेवाकाल के दौरान यह पौधा उनकी जीर्ण शीर्ण शरणस्थली की टूटी-फूटी दीवार में उग आया था जिसे वह करीने ने निकालकर बस से "शिवपुरी"ले आये थे ओर घर के सामने पड़े खाली स्थान में रोप दिया था।मुझे याद है कि तब पापाजी ने सेवा काल की 'यायावर जिंदगी' के बीच परिवार के सिर छुपाने के लिये विपरीत परिस्थितियों में भी हाउसिंग बोर्ड से किस्तो पर यह आसरा क्रय किया था।धुंधली स्मृतियों में मुझे याद है कि नवरोपित इस "बटबृक्ष" को जानवरों से बचाने के लिये घरौंदा बनाने हेतु संकलित किये गये पत्थरो को ढूंढकर लाने में हमने,बड़े भैया ने (जो पहले ही मृत्युलोक से विचरण कर गये..)तीनो बहनों ने व चाचाजी ने उनका हाँथ बटाया था।फिर शुरू हुआ उनका सुबह शाम पानी देने व समय समय पर गोबर की खाद देने का क्रम,...!*
*पापाजी का प्रेम पाकर अनजान शहर का वह नवांकुरित पौधा नये शहर 'शिवपुरी"में देखते ही देखते बढ़ने लगा।उसकी नव अंकुरित कोपलों को जानवरों से बचाने के लिये घरोंदे का आकार भी बढ़ने लगा।कोई जानवर ऊपर से मुँह डालकर किसी कोंपल को आहत न कर दे इसलिये घरोंदे के ऊपर रखे गये बेरी के कांटो को भी प्रतिदिन करीने से रखना भी पापाजी की दिनचर्या का ही हिस्सा रहा जिसमे काटे लगने से वे अक्सर ज़ख्मी होते थे और हांथो में लगे कटीले कांटो के अवशेषों को सुई की तीखी नोक से कुरेद कुरेद कर निकालते थे।तमाम मर्तवा इस कशमकश में मम्मीजी को भी उनके हांथो पर सुई कुरेदनी पड़ती थी जिसमे अक्सर खून तक निकल आता था।'पापाजी' कहते थे कि पौधे ऐसे ही नही पलते.., उन्हें बच्चो की तरह ही पाला जाता है,उनकी देखरेख की जाती है..!(हालांकि इस बात का अर्थ मुझ नासमझ को अब समझ आया है....)*
*खैर, देखते देखते हम परिवारीजनों के साथ-साथ यह "बटबृक्ष भी बढ़ता चला गया।हमारी ही तरह इसके लालन-पालन में भी "पापाजी"ने कोई कोताही नही बरती।दायित्व निर्वहन की श्रंखला में हम सब की शादियां,बंश की बृद्धि,परिवार के हर सुख-दुख का यह सदैव साक्षी रहा।यदि शादियों के बाद बहने घर से विदा हुई तो हर बार पापाजी के इस बट बृक्ष ने अपनी बाह नई कोपलों के साथ खोली ओर घर मे आई बहुओ को अपनी छत्रछाया में लिया।इसके नीचे बना तत्कालीन कच्चा चबूतरा पूज्य दादाजी(जो अब नही है..)की साधना स्थली बना।*
*दिन गुजरते गये,हमारे व अन्य पोधो की तरह "बट बृक्ष भी बढ़ता गया और आज 28 साल का युवा पेड़ बन गया।उसकी शाखाये ठीक पापाजी की तरह ही विपरीत मौसमो से इस परिवार की रक्षा के लिये ढाल बनकर खड़ी हो गयी...!तमाम जीव जंतुओं ,पक्षियों ने उसे अपना स्थायी -अस्थायी ठिकाना बना लिया।*
*जीवन के उतार चढ़ाव के बीच सब कुछ ठीक था किंतु 16 दिन पहले अचानक एक तूफान आया जिसमे पापाजी हम सब को छोड़कर चले गये।हम रोये,बिलबिलाए किन्तु....!यही अंतिम सत्य था...!मृत्यु लोक की इस सत्यता को साकार होना ही था सो हो गयी...!!पापाजी हम सबसे दूर,बहुत दूर,अनंत यात्रा के लिये प्रस्थान कर गये...!!एक समय पापाजी ने बट बृक्ष को आसरा देकर नया जीवन दिया था,उस दिन वही बट बृक्ष उनकी पार्थिव देह को धूप से बचाने के लिये तनकर खड़ा रहा।उसी ने विसर्जन से पूर्व उनकी अस्थियो को अपनी गोद मे रखा।यकीनन वह भी रोता रहा होगा...!यकीनन उसने भी पापाजी को आश्वस्त किया होगा उनके ही स्वरूप में पीढ़ियों तक इस परिवार को अपनी क्षत्रछाया में रखने के लिये....!उनकी यादों को चिरस्थायी बनाये रखने के लिये...!!*
*आज "पूज्य पापाजी"सशरीर नही है किंतु "बट बृक्ष"के रूप में उनका आशीर्वाद अमिट रूप से पीढ़ियों तक के लिये हम सबके साथ प्रत्यक्ष स्वरूप में है...!*
*उनके जीवन के 85 वर्षों के दौरान आये प्रत्येक दिन से अधिक पौधे तो हम उनके जीतेजी रोपित कर ही चुके है किन्तु अब यह संकल्प ओर अधिक दृढ़ हो गया है कि मृत्यु लोक में उनकी सशरीर उपस्थिति के प्रत्येक घण्टे,मिनिट को भी आजीवन पौधे लगाकर,बचाकर संरक्षित ,अमिट, चिरस्थायी करुगा...।हमारे द्वारा रोपित हर पौधा अब उनकी यादगार होगा..!*
*"पापाजी,आप सदैव मेरे प्रेरणा स्त्रोत थे,हो और आजीवन रहोगे...!हम कभी आपको भुला नही पायेंगे।आपके द्वारा सींचा गया हर पौधा-पेड़ सदा हमारी स्मृतियों को आपकी खुशबू से महकायेगा..!*
Miss u papa...!
*अनंत यात्रा के लिये अशेष शुभकामनाये...!हे दिव्यात्मा,सदैव अपना आशीर्वाद बनाये रखना...!*
*नमन_श्रद्धासुमन....!!*
*आप_बहुत_याद_आओगे_पापाजी"$$$$$$$$*

