अष्टाह्निका पर्व : चौंसठ रिद्धिधारी मुनिराजों का स्मरण कर की पूजा



हाटपिपल्या-विशुद्ध आत्म स्वभाव के साथ किया जिन दर्शन जन्म जन्मांतर के प्रबल पुण्योदय का सूचक होता है। भक्ति का अतिरेक भी आलौकिक आनंद की अनुभूति का कारक सिद्ध होता है। ऐसा ही विलक्षण दृश्य श्रीजी के कलशाभिषेक के दौरान दृष्टिगत हुआ। शांतिधारा के दौरान भावभक्ति का अविरल प्रवाह मन मयूर पुलकित करता जा रहा था। अंतरंग के विशुद्ध मनोभावों के साथ श्रीसिद्धप्रभु की आराधना में रत सकल समाजजन श्रीजी को निहारते धन्य हुए जा रहे थे। भाव-भक्ति का चरमोत्कर्ष नृत्य की मुद्रा में परिवर्तित होता नजर आया।
सिद्धचक्र महामंडल विधान अंतर्गत बा.ब्र. अंकित भैया एवं चिद्रूप भैयाजी के सान्निध्य में इंद्र-इंद्राणी एवं श्रावक-श्राविकाओं ने विधान पूजन की प्रक्रिया का अनुपालन किया। मन-वचन-काय की संपूर्ण एकाग्रता के साथ चौसठ रिद्धिधारी मुनिराजों का स्मरण करते हुए पूजा-अर्चना की। अष्टान्हिका महापर्व अंतर्गत भगवान पार्श्वनाथ जिनालय में श्रीसिद्धचक्र महामंडल विधान आयोजित है। इसी तारतम्य में श्रीसिद्धप्रभु की आराधना करते हुए अर्घ्य समर्पण के साथ भाव-भक्ति का अनूठा वातावरण सकल समाज को दिव्य अनुभूति से रूबरू करा रहा है।
   संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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