आचार्य सुनील सागरजी महाराज ने भगवान राम और हनुमानजी की भक्ति से दी सीख


सागवाड़ा-आचार्य सुनीलसागरजी  महाराज ने ऋषभ वाटिका के सन्मति समवशरण प्रवचन सभागार में शुक्रवार को धर्म सभा को संबोधित किया। आचार्य ने भक्ति का महत्व बताते हुए कहा कि आपकी भक्ति समर्पण मांगती है। भक्ति करो ऐसी कि प्रभु को रिझाए, हम क्या मिलने जाएं वो खुद मिलने आए। ऐसी भक्ति में बड़ा दम लगता है, ऐसी भक्ति में समर्पण होता है। जब तक अहंकार होता है तब तक समर्पण नहीं हो सकता और समर्पण के बिना भक्ति हो ही नहीं सकती। आचार्य ने भगवान श्रीराम और हनुमानजी की भक्ति का उल्लेख कर कहा कि रावण प्रखंड विद्वान होने के साथ ही कई शास्त्रों और विद्याओं का ज्ञाता था मगर अहंकार के कारण उसका अंत हुआ है। आचार्य ने कहा कि तानसेन बहुत बड़े संगीतकार थे। अकबर के नवरत्न में से एक थे। वे जब तान छेड़ते थे तो सुनने वाला झूमने लग जाता था। भक्ति की तान छिड़े तो सुनने वाला झूमने लग जाए। तानसेन के गुरू स्वामी हरिदासजी थे। शास्त्रीय संगीत की परंपरा बहुत प्राचीन है। शास्त्रीय संगीत ईश्वर की आराधना का दूसरा स्वरुप है। आचार्य ने सामान्य नमस्कार, अष्टांग नमस्कार, पंचांग नमस्कार और साष्टांग नमस्कार आदि नमस्कार के प्रकार बताते हुए कहा कि अभिवादन का तरीका एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति के लिए सम्मान दर्शाता है। आचार्य ने कहा कि सौ अनाडिय़ों का गुरु बनने से एक सिद्ध पुरुष का शिष्य बनना अच्छा है। आचार्य ने अष्टान्हिका पर्व को लेकर किए जा रहे नंदीश्वर द्वीप महामंडल विधान का महत्व बताते हुए कहा कि विधान पर जितनी भी प्रतिमाएं हैं वह सिद्ध की हुई शुद्ध प्रतिमाएं हैं, इसलिए पूज्य है। जब तक आप किसी को रिझा न लो आप रीझ नहीं सकते, आप रीझ गए तो किसी को भी रिझा सकते हो। गुरु को रिझा लो तो वो भगवान से मिला सकते हैं। रामायण का जिक्र करते हुए आचार्य ने कहा कि रामायण में राम-रावण के युद्ध का मुख्य कारण सीता हरण नहीं बल्कि सुपर्णखां कांड था। रावण की बहन सुपर्ण खां खुद लक्ष्मण पर रीझ गई पर लक्ष्मण जैसे सिद्ध पुरूष को वह रिझा नहीं पाई। लक्ष्मण से निवेदन पर उसने आज्ञा लेने बड़े भाई भगवान श्रीराम के पास भेजा तो राम को देख कर वो राम से निवेदन करने लगी। भाव बड़े खतरनाक होते हैं। गुरूदेव को रिझाने पर वे रीझने वाले नहीं हैं पर वात्सल्य भाव जरूर पैदा करते हैं।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडीके

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