सतपुड़ा की पहाड़ियो पर स्थित सिद्ध क्षेत्र मुकतागिरीयह पावन तीर्थ बड़ा ही आलोकिक है यहा के दर्शन कर वंदना कर एक आलोकिक अनुभूति एक सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है


एक परिचय सिद्ध क्षेत्र
   यह सिद्ध क्षेत्र भारत के मध्य मे है एवम महाराष्ट्र मध्यप्रदेश की सीमा पर आता है यह बेतुल जिले मे आता है सतपुड़ा पर्वत की श्रंखला नयन मनोहर हरे भरे व्रक्ष के बीच यह क्षेत्र बसा है यहा पर 250 फीट की ऊंचाई से जलधारा गिरती है जिससे जल प्रपात  निर्मित हुआ जो मन को आनंदित कर देता है और मन के अंदर शीतलता का अहसास कराता है हरे भरे पर्वतो के द्रश्य कॉ देख मनमे एक उमंग सी भर जाती है मन मे एक नयी चेतना जाग्रत होती है
     इतिहास
   इस स्थान से साढ़े तीन कोडी मुनिराज मोक्ष पधारे है वही निर्वाणकांड भाषा मे लिखा है अचलापुर की दिशा ईशान तहा मेढगिरि नाम प्रधान
   साढे तीन कोड़ी मुनिराय तिनके चरण नमू चितलाय इस स्थान का इतिहास काफी रोमहर्षक है अचलपुर स्थित स्वर्गीय श्री दानशूर धर्माभिमानी श्रीमंत नथुसा पासुसा कलमकर इन्होंने अपने साथी स्वर्गीय राय साहेब मोती संगई रुखबसंगई एवम स्वर्गीय श्री गेंदालाल जी हीरलालजी बड़जात्या के साथ मिलकर अंग्रेज़ो के जमाने मे श्री खापडे के मालगुजारी से यह मुकतागिरी  पहाड़ 1928 मे खरीदा था उन्होने जैन समाज के लिए एक अविस्मरणीय कार्य किया  जिसका जैन समाज युगो युगो तक ऋणी रहेगा
     मुक्तागिरि का नाम मेढागिरि नाम की सार्थकता
                    इस क्षेत्र पर 10 वे तीर्थंकर प्रभु शीतलनाथ का समवशरण आया था  ऐसा निर्वाणकांड मे उल्लेख है उस वक़्त मोतियो की वर्षा होने से इसे मुक्तागिरी कहा जाता है साथ ही कहा जाता है एक हज़ार वर्ष पूर्व मंदिर क्रमांक 10 के पास ध्यान मग्न मुनिराज के सामने एक मेढा पहाड़ की चोटी पर  से  गिरा मुनिराज ने उसके कान मे नमोकार मंत्र सुनाया वह मरणोंउपरांत देव बनकर मुनि महाराज के दर्शन को आया तब से हर अष्टमी चतुर्दशी यहा केसर चन्दन की वर्षा होती है उसी समय से इसका नाम  मेढ़ागिरि भी है
          यहा पर अतिप्राचीन मंदिर है जिसे मगध सम्राट बिम्बसार ने बनवाया था
     4  फीट ऊंची सहस्त्रफणी काले पाषाण की प्रतिमा विराजमान
                 मंदिर संख्या 26 पर भगवान पार्श्व प्रभु की 4 फीट ऊंची काले पाषाण की  सहस्त्रफणी आतिशयकारी प्रतिमा विराजमान है ऐसा कहा जाता है की अचलपुर के एक सरोवर के किनारे राजा श्रीपाल कॉ स्वप्न मे इस प्रतिमा के दर्शन हुये तथा उस स्थान से  बाहर निकालने का आदेश प्राप्त हुआ कालांतर मे वही प्रतिमा यहा विराजित हुयों सहस्त्रफणी आतिशयकारी पार्श्व प्रभु की प्रतिमा 16वी शताब्दी की है
         मेरा अनुभव
     मानो दर्श कर लगा स्वर्ग यही है बरसो का सोचा पूर्ण हो गया ऐसा आलोकिक तीर्थ जहा जाने के बाद मन नहीं भरता मन करता यही रहा जाये  है यह पावन भूमि यहा बार बार आना इस क्षेत्र की भूमि को आकर के झुक जाना
                        एक रिपोर्ट अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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