क्षेत्र परिचय भातकुली ग्राम महाराष्ट्र के अमरावती शहर के पश्चिम मे 18 KM दूरी पर बसा है इसकी आबादी अनुमानित 10000 है प्राचीन इतिहास को यदि हमको जानना है तो ग्राम के नाम मे भी सार्थकता सिद्ध होती है ऐसा ही भातकुली के नाम मे है विदर्भ की प्राचीन राजधानी का नाम कौडण्यपुर था इसी के बराबर महत्वपूर्ण भोजकुट आशय आज का भातकुली ग्राम जाना जाता है
भातकुली के पश्चिम मे 1 मील की दूरी पर एक स्थान है रुकमी राजा ने इस स्थान पर एक भव्य चेत्याल्य का निर्माण करवाया था यहा अजंता पर्वत के वैरूल भाग से काले पाषाण मंगवाकर शिल्पकारों के हाथो 1008 भगवान श्री आदिनाथ की प्रतिमा बनवाई मूर्ति बन जाने के बाद इसे विधिपूर्वक चेत्याल्य मे विराजमान किया गया यश प्रतिमा अत्यंत मनोज्ञ और मनोहारी है सम्पूर्ण भारतवर्ष के इतिहासकारो का अनुमान है यह प्रतिमा लगभग 3000 वर्ष पूर्व की होगी रुकमी राजा के उपरांत इस क्षेत्र पर सातवाहन वाकाटक राष्ट्रकुट राजा का राज रहा बाद मे कालांतर मे भोजकुट का राज वैभव समाप्त हो गया सन 1200 के बाद इस क्षेत्र के राजवाड़े चेत्याल्य ध्वस्त हो गये आगे पेढ़ी नदी के किनारे गाव बस गये भोजकूट ग्राम मध्य मे एक गढ़ी का निर्माण हुआ संवत 1956 मे मुगलो से सुरक्षा के लिए इस प्रतिमाँ को गढ़ी मे छिपा दिया गया और यह आलोकिक प्रतिमा 18वी शताब्दी तक उसी स्तिथि मे गढ़ी मे छिपी रही शिवाजी महाराज के कार्यकाल मे इस क्षेत्र मे मुगलो की सत्ता समाप्त यहा रहने वाले लोग पूर्णतया भयमुक्त हो गये
19 वी शताब्दी मे विलक्षण घटना
19 वी शताब्दी के अंतिम काल मे एक विलक्षण घटना हुई श्री आदिनाथ प्रभु ने ग्राम प्रमुख को स्वप्न मे दर्शन दिये और प्रतिमा जी के बारे मे बताया स्वप्न से जागते ही ग्राम प्रमुख ने गढ़ी को जगह जगह खुदवाकर प्रतिमा जी को ढूंढने का सतत प्रयास किया गढ़ी का चप्पा चप्पा खोद डाला गया लेकिन प्रतिमा नहीं मिली कुछ समय उपरांत ग्राम प्रमुख को भगवान ने स्वयं दर्शन दिये
ग्राम प्रमुख ने विनत भाव से प्रभु से मूर्ति का निश्चित स्थान पुछ ही लिया प्रभु ने संकेत दिया गढ़ी के आस पास नियमित एक गोमाता घूमती रहती है और प्रतिदिन एक निश्चित स्थान पर दूध टपका कर चली जाती है उसी स्थान के नीचे प्रतिमा दबी है ग्राम प्रमुख ने तुरंत आस पास देखा टीओ गोमाता दिखाई दी जो एक स्थान पर दूध की वर्षा कर रही थी यह देखकर ग्राम प्रमुख खुशी से झूम उठा उसने समस्त ग्रामवासियों से स्नान करके आने को कहा महिलाये अपने मस्तक पर मंगल कलश धारण कर आयी शुभ घड़ी देख भूमिपूजन कर वहा खुदाई की गयी आखिर खोदते समय अचानक पाया की कुदाली की नोक जमीन मे दबी प्रतिमा जी के घुघराले बालो पर लग गयी ग्राम मे उस समय जैन मत मानने वाले लोग नहीं थे इस कारण प्रतिमा की पहचान नहीं हो सकी कुछ ग्रामवासियों ने इसे ग्राम देवता की प्रतिमा मानकर पूजना शुरू कर दिया कुछ ने बावजी महाराज तो कुछ ने रुकमी राजा की प्रतिमा मानकर पूजना शुरू कर दिया प्रतिमा अत्यंत चमत्कारी थी प्रतिमा जी की पुजा अर्चना से ग्रामवासियों की मनोकामना पूर्ण होने लगी
नेमीसागर जी महाराज ने बताया यह प्रतिमा भगवान आदिनाथ की है
देखते देखते इसकी कीर्ति चारो और फ़ेल गयी आसपास के लोग दर्शन को आने लगे इस सुनहरे अवसर पर रिद्धी सिद्धि प्राप्त श्री नेमसागर जी महाराज इस स्थान पर आये अपने शिष्यो और गाव वालो के साथ महाराज श्री ने प्रतिमा के दर्शन किये पदमासन मुद्रा इस दिगंबर प्रतिमा मे मस्तक के पीछे प्रभामण्डल था मूर्ति की द्रष्टि नासाग्र थी काले पाषाण से बनी इस दिव्य मनोहारी दिगंबर प्रतिमा को देख महाराज श्री ने पहचान करने मे जरा भी विलब नहीं हूआ महाराज श्री ने ग्रामवासियो को जैन धर्म के 24 तीर्थंकरो के नाम और लक्षण समझाये इस पर ग्रामवासियों को पुरा भरोसा हो गया यह प्रतिमा आदिनाथ भगवान की है
आज भी भातकुली मे यह दिगंबर अतिशय क्षेत्र भातकुली पूज्य मुनि श्री नेमसागर जी महाराज की यादे निर्माण मे सहयोग देने वाले ग्रामीणजनो की यादे अपने भीतर समेटे हुये है आज दिगंबर जैन मतालबियों की जितनी श्रद्धा इस क्षेत्र पर है उतनी ही श्रद्धा भातकुली वासियो की भी है आज इसलिये यह ग्राम भातकुली जैन के नाम से विख्यात है प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण पंचमी को यहा वार्षिक रथोत्सव होता है जिसमे दूर दूर से यात्री आकर पुण्यार्जन करते है क्षेत्र पर मानस्तभ विश्वस्तर मे अपने ढ़ंग की एक विशुद्ध शास्त्र सम्मत एवम मनोहारी अनूठी अनुपम कलाक्रती है यह एक ऐसा चमत्कारी क्षेत्र है जहा इस युग मे भी निर्मल निरपेक्ष –भाव से की गई वंदना से भक्त की सभी कामनाये पूर्ण होती है आप भी इस क्षेत्र की वंदना कीजिये
मेरी अभिव्यक्ती
जैसे ही बाबा के दर पर पहुचा एक नयी चेतना जाग्रत हो गयी सारी थकान दूर हों गयी बस एक टक बाबा को पलको मे निहारता रहा सचमुच जैसा सुना था वैसा पाया तेरी प्रतिमा इतनी सुन्दर तू कितना सुन्दर होगा
एक रिपोर्ट अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी