राजनीतिक हलचल-सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार में अब भी दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया अगल थलग से दिखाई पड़ते हैं। राजा और सीएम नाथ की जुगलबंदी ने सूबे की राजनीति में सिंधिया रूपी कोहिनूर को कमजोर कर दिया है। गुना लोकसभा में मिली हार भी संभवतः गुटबाजी का ही नतीजा है, जिसके कारण उनकी छवि बहुत धूमिल हो गई है।
राज्य की कांग्रेस की राजनीति में अब सिंधिया नाम का सितारा कुछ धुंधला सा गया है। कारण साफ है गुटबाजी हावी है। सरकार बनने के बाद से राजधानी में राजा साहब का डेरा बना रहता है। नाथ की छाया के रूप में राजा साहब का जलजला किसी से छिपा नहीं। परंतु इन सबके बीच कांग्रेस के कोहिनूर अपनी उपेक्षा से काफी क्षुब्ध है। लोकसभा में मिली हार का भी विश्लेषण करें तो उसमे भी गुटबाजी ही मुख्य वजह देखने को मिल रही है। सिंधिया भी बखूबी समझ रहे है कि किन कारणों से उन्हें करारी हार झेलनी पड़ी है। इससे उनकी छवि पर बहुत बुरा असर पड़ा है। हार से उबरने के बाद एक बार फिर सिंधिया थोड़े सक्रिय जरूर हुये है। परंतु जुगल जोड़ी के कारण उनका राज्य में हस्तक्षेप नहीं बढ़ रहा है।
सीएम साहब खुद भी किसी का हस्तक्षेप अपनी सरकार में नहीं चाहते है। खासकर श्रीमंत साहब का, वैसे राजा साहब इस गुटों की राजनीति में सेफ गेम खेल कर चल रहे है और मंत्रालय से लेकर हर जगह उनका बोलबाला दिखाई पड़ता है। वहीं इस गुटबाजी की भेंट पर सिंधिया नाम का सितारा कमजोर पड़ता जा रहा है। वैसे अब सूत्र यह भी बताते हैं कि सिंधिया समर्थक विधायक-मंत्री भी अब जुगलजोड़ी की शरण में है। हालांकि सिंधिया के सामने वह उनकी डुगडुगी जरूर बजाते है, परंतु उनके राज्य छोड़ते ही वापस सीएम साहब और राजा साहब की गोद में जाकर बैठ जाते है।
राज्य की कांग्रेस की राजनीति में अब सिंधिया नाम का सितारा कुछ धुंधला सा गया है। कारण साफ है गुटबाजी हावी है। सरकार बनने के बाद से राजधानी में राजा साहब का डेरा बना रहता है। नाथ की छाया के रूप में राजा साहब का जलजला किसी से छिपा नहीं। परंतु इन सबके बीच कांग्रेस के कोहिनूर अपनी उपेक्षा से काफी क्षुब्ध है। लोकसभा में मिली हार का भी विश्लेषण करें तो उसमे भी गुटबाजी ही मुख्य वजह देखने को मिल रही है। सिंधिया भी बखूबी समझ रहे है कि किन कारणों से उन्हें करारी हार झेलनी पड़ी है। इससे उनकी छवि पर बहुत बुरा असर पड़ा है। हार से उबरने के बाद एक बार फिर सिंधिया थोड़े सक्रिय जरूर हुये है। परंतु जुगल जोड़ी के कारण उनका राज्य में हस्तक्षेप नहीं बढ़ रहा है।
सीएम साहब खुद भी किसी का हस्तक्षेप अपनी सरकार में नहीं चाहते है। खासकर श्रीमंत साहब का, वैसे राजा साहब इस गुटों की राजनीति में सेफ गेम खेल कर चल रहे है और मंत्रालय से लेकर हर जगह उनका बोलबाला दिखाई पड़ता है। वहीं इस गुटबाजी की भेंट पर सिंधिया नाम का सितारा कमजोर पड़ता जा रहा है। वैसे अब सूत्र यह भी बताते हैं कि सिंधिया समर्थक विधायक-मंत्री भी अब जुगलजोड़ी की शरण में है। हालांकि सिंधिया के सामने वह उनकी डुगडुगी जरूर बजाते है, परंतु उनके राज्य छोड़ते ही वापस सीएम साहब और राजा साहब की गोद में जाकर बैठ जाते है।

bjp me ajana chahiye
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