परिवार रूपी वृक्ष को अहंकार की आरी से बचाना बहुत जरूरी:मुनिश्री



खुरई -परिवार एक वृक्ष की तरह है जो अपनी छाया में सबको विश्राम देता है, अपने फलों से सबको पुष्ट करता है। अपने फूलों से सब में आनंद भरता है। यह वृक्ष जब तक सुरक्षित है, तब तक बसेरा है, सहारा है, आनंद है।
वृक्ष यदि असुरक्षित है तो हमारे सामने सिवाय संकट के कुछ नहीं है। यह बात प्राचीन जैन मंदिर में प्रवचन देते हुए मुनिश्री प्रभात सागर जी  महाराज ने कही। उन्हाेंने कहा कि इस वृक्ष को अहंकार की आरी और कपट की कुल्हाड़ी से बचाना बहुत जरूरी है। अहंकार की आरी जब आड़े आती है तो वृक्ष कट जाता है और जब कपट की कुल्हाड़ी चलने लगती है तो वृक्ष नष्ट हो जाता है। अगर अपने परिवार में हमें समरसता स्थापित करनी है तो अहंकार और कपट को खत्म करना होगा। ये तब खत्म होंगे जब हमारे हृदय में चार सकारात्मक बातें होंगी, उन्हें हम आत्मसात करेंगे। हमारा जीवन धन्य होगा। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर के संदेश का एक ही सार है- 'मित्ति भूयेसु कप्पए, परस्परोपग्रहो जीवानाम्। सुखी परिवार के चार पाए। प्राणी मात्र के प्रति मैत्री का भाव रखो। हर जीव का एक-दूसरे के साथ जो सम्बल हो वह उपकारपूर्ण सम्बल हो।
        संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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