67 साल की आयु में 50 वर्ष के बेटे को खोने का दुख किस पिता को नहीं होता :आचार्य पुष्पदंत सागर जी



सोनकच्छ-जलेबी का स्वाद लेते हुए आचार्य पुष्पदंत सागरजी के प्रवचन सुनकर मन में अलख जगाई और आचार्यश्री से कहा मैं भगवान बन सकता हूं क्या। इस पर आचार्यश्री बोले तुम भी भगवान बन सकते हो और वह बालक पवन तरुण सागर के रूप में इस युग को मिला। आज दुनिया ने तरुण सागर को नहीं खोया है, बल्कि मानव धर्म का क्रांतिकारी युग खोया है।
यह बात कड़वे प्रवचनों में विख्यात क्रांतिकारी राष्ट्रसंत मुनिश्री तरुणसागरजी महाराज की प्रथम समाधि वर्षगांठ पर उपकार दिवस तरुणोत्सव कार्यक्रम में एकलौते शिष्य क्षुल्लक पर्वसागरजी महाराज ने कही। उन्होंने प्रवचन के दौरान नम आंखों से कहा मेरे गुरु से मुझे वह स्नेह मिला है, जो मुझे मेरे माता-पिता भी नहीं दे पाते। कार्यक्रम में पुष्पगिरि तीर्थ प्रणेता आचार्य पुष्पदंत सागरजी  महाराज ने कहा कि राम, बुद्ध, महावीर, कृष्ण हमारी मानव समाज को पुरस्कार के रूप में मिले हैं। एक बालक गिल्ली डंडा खेलते हुए मुझे दिखा। उसका खेल देखकर मैंने उसकी योग्यता को पढ़ लिया और उसकी मां से बोला मैं इसे ले जा सकता हूं। मां ने हां कहा और आज बीज वृक्ष बन के आपके सामने अदृश्य रूप में खड़ा है। 67 साल की उम्र में 50 वर्ष के बेटे को खोने का दुख किस पिता को नहीं होता है। इसका दर्द आप भलीभांति समझते हैं। कड़वे प्रवचन का एक बीज अपने मन में रोपित कर लो। मैं कहता हूं एक नहीं पचास तरुणसागर आपके सामने खड़े होंगे। मन में प्रसन्नता थी। मेरे कोक से जन्मा बालक आज ऊंचाइयों पर है। यदि डेढ़ दिन का समय मुझे मिल जाता तो मैं उन्हें बचा लेता है। यदि समाज सिद्धांतों को नहीं परोसती तो आज तरुणसागर आपके सामने खड़े होते। उनके आदर्श को जीवन में उतार लो, आप भी तरुणसागर बन जाओगे।
मंगलाचरण मंगलाष्टक के साथ हुई शुरुआत :
कार्यक्रम का शुभारंभ मंगलाचरण मंगलाष्टक के साथ हुई। जहां बाहर से पधारे गुरु भक्तों द्वारा पूज्य गुरुदेव तरुणसागरजी महाराज के चित्र के समक्ष द्वीप प्रज्वलन किया। इसके बाद भक्तों ने आचार्यश्री के चरणों का पाद प्रक्षालन किया। कार्यक्रम में गुरुभक्त राशि एंड ग्रुप आगरा ने भक्तिमय संगीत के माध्यम से राष्ट्रसंत को अपनी विनयांजलि दी।
दिल्ली, मुंबई, औरंगाबाद सहित कई जगह के
भक्त हुए शामिल
पत्थर एक बार मंदिर गया और भगवान बन गया : प्रसन्नसागरजी
अन्तर्मना  मुनि श्री प्रसन्न सागरजी महाराज ने कहा पत्थर एक बार मंदिर गया भगवान बन गया और इंसान बार-बार मंदिर जाने के बाद भी भगवान नहीं बन पाया। इसी कड़ी में शिष्य पीयूष सागर जी महाराज ने कहा जब व्यक्ति बीमार होता है तो उसे डॉक्टर कड़वी दवाई देता है और वह स्वस्थ हो जाता है। उसी प्रकार तरुणसागरजी ने दुनिया को कड़वे प्रवचन दिए, जो सीधा बीमारी को दूर करते हैं।
          संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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