सिंधिया के समर्थन में एक बाद एक इस्तीफा..??



राजनीतिक हलचल-ये निष्ठा ही है जो अपनों के लिए निजी स्वार्थ को भूलकर उनके साथ खड़े हो जाते हैं, इनमें से कुछ के दिल मे रिश्तों का महत्व होता है तो कुछ के दिल में अपनों के द्वारा दिए गए का एहसान । ऐसा ही दौर आजकल चल रहा है मध्यप्रदेश कांग्रेस में, वाकया कुछ इस प्रकार है कि मध्यप्रदेश में वर्तमान अध्यक्ष के स्टीफ़े के बाद कांग्रेस को अपने नए कप्तान की तलाश है और इसके लिए मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पास काविल और कद्दावर नेताओं की फौज है, जिनका अपने अपने अंचल में रुतबा है । बात जब मध्यप्रदेश से निकलकर दिल्ली दस जनपथ तक पहुँची तो इन सब नामों में मध्यप्रदेश से आने वाले महाराज का नाम सबसे ऊपर था,और हो भी क्यों न,ये वही महाराज हैं जिन्होंने अपने युवा जोश के साथ मध्यप्रदेश में पंद्रह वर्ष से वनवास काट रही कांग्रेस को सत्ता की कुर्सी तक पहुंचाने में खूब पसीना बहाया और कामयाब भी हुए । अब महाराज की मंशा सूबे के मुखिया बनकर श्यामला हिल्स पर रहने की थी लेकिन दिल्ली दरबार में जब फैसला हुआ तो गुटीय राजनीति के लिए जानी जाने वाली कांग्रेस ने अपने महाराज को मध्यप्रदेश में सत्ता न सौंपकर नाराज कर दिया लेकिन महाराज थे कि कहते रहे कि मैं पदों और सत्ता की दौड़ में कभी शामिल नहीं रहा, मैं हमेशा अपने पूज्य पिताजी के पदचिन्हों पर चला हूँ और राजनीति मेरे लिए समाजसेवा का एके माध्यम है ।
बात लोकसभा तक कुछ ठंडी रही क्योंकि महाराज और उनके समर्थकों को उम्मीद थी कि सूबे का मुखिया न सही लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद सूबे में पार्टी का मुखिया तो बन ही जायेंगे लेकिन न तो महाराज जानते थे और न ही उनके समर्थकों सहित विपक्षी दल कि आने वाला समय उनके लिए बुरे दौर की तरह गुजरेगा और जिस संसदीय क्षेत्र को अपना गढ़ मानते हैं और भाजपा भी कई प्रयत्नों के बाद अभेद किला मानती है वो 2019 की आँधी में भरभराकर धराशायी हो जाएगा वो भी उनके हाथों जो कभी महाराज की गाड़ी के आगे सेल्फी के लिए मशक्कत करते थे,महाराज अपने गुरुर से हारे या चाटुकारों की फौज के कारण या फिर जनता से सीधे संवाद न होने के कारण ये तो पता नहीं लेकिन राजनीति को समझने वाले अपने अपने हिसाब से तर्क देते हैं ।
महाराज को सूबे में कांग्रेस का मुखिया बनते देख राजनीति का चाणक्य कहे जाने वाले राजा साहब के मन में कुछ और ही आ गया और विंध्य क्षेत्र के राज परिवार के नेताजी को अध्यक्ष बनाने की पैरवी कर दी (जैसा कि खबरों में बताया गया) ,राजा के दखल के बाद महाराज अध्यक्ष पद की दौड़ में पिछड़ते गए,इसके बाद खबर चली कि महाराज वगावत पर उतर आए हैं कि यदि उन्हें अध्यक्ष पद नहीं मिला तो कांग्रेस को अलविदा कह देंगे,अलविदा कहने के बाद नई पार्टी बनाएंगे या फिर भाजपा में शामिल होंगें या फिर अपने जय विलास पैलेस में आराम, अब ये तो वो खुद जानें लेकिन खबर तो ये भी है कि महाराज अब अपनी संपत्ति की भी देखभाल में लगे हैं क्योंकि उनके सिपसलाहकारों ने करोड़ों के बारे न्यारे कर महाराज को नुकसान पहुंचाया है ।
एक खबर सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों में खूब गरम हो रही है कि महाराज नाथ को छोड़कर कमल का साथ दे सकते हैं, और दे भी दें तो अचरज नहीं होना चाहिए क्योंकि ये राजनीति समय की नजाकत को समझकर ही की जाती है, सही समय पर सही निर्णय राजनीति में सफल बनाती है । महाराज के समर्थन में पूजा पाठ,हवन,भजन से लेकर खून से लिखे पत्र और आलाकमान तक अपनी बात पहुंचाने के लिए कार्यकर्ता,पदाधिकारी और समर्थित विधायक मंत्री स्तीफा देने तक की धमकी दे रहे हैं, अब सवाल ये है कि ये स्तीफा कब देंगे,जब कि महाराज अध्यक्ष नहीं बनते हैं तब या फिर महाराज कांग्रेस को अलविदा कहेंगे |

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