भगवान श्रीराम की करनी और श्रीकृष्ण की कथनी पर चलना चाहिए : अनुभव सागरजी



डुंगरपुर-आचार्य अनुभवसागर जी  महाराज ने शहर के दशहरा मैदान में रामकथा के दूसरे दिन भगवान राम के चरित्र का वर्णन करते हुए प्रकृति से भगवान के जुड़ाव को समझाया। उन्होंने पांडाल में आने वाले सर्व समाज को प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन को कथा के माध्यम से समझाया। कथा का मूल तत्व आमजन को सुखमय जीवन बनाने के मूल मंत्र बताए। उन्होंने कहा कि संसार में कोई भी महापुरुष आए, उन्होंने धर्म के मार्ग के लिए कदम अलग-अलग चले लेकिन सभी महापुरुषों का उद्देश्य सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय ही रहा है। उन्होंने कहा कि रामकथा में कैकेयी ने राजा दशरथ के कान में जाकर क्या-क्या कह गई। जिससे राजा दशरथ के चेहरे के भाव बदल गए। आचार्य ने कहा कि कैकेयी को खलनायिका समझना गलत है। वो भी एक मां थी। मां कभी भी अपने बच्चे का बुरा नहीं चाहती है। हमने आज तक कैकेयी को बुरा मान रखा है। उसने अपने बच्चे भरत के वैराग्य में जाने का डर था। इसलिए उन्होंने अपने पति से इच्छित वर मांगा। भरत को राजपाट किसी से मोह नहीं था। उन्हें तो सिर्फ भगवान राम के नाम का जप करना था। मां ने सोचा की कौनसी बेड़ी में अपने पुत्र भरत को डालू जिससे वो सन्यास को धारण नहीं करे। मां ने तो सिर्फ अपने पुत्र के लिए राजपाट मांगा था लेकिन भगवान राम के लिए कभी भी बुरा नहीं चाहा था। पूरे भारतवर्ष में विश्व में सबसे ज्यादा भगवान राम के चरित्र पर वर्णन ज्यादा है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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