बिजाैलिया -तपोदय तीर्थ पर बुधवार काे मुनि श्री सुधासागर ji महाराज ने कहा कि दोष ढूंढना गलत नहीं, लेकिन दोष दूसरों के नहीं स्वंय के ढूंढो। जिस तरह हम अपनी उपलब्धियों पर इतराते हैं उसी तरह अपनी गलतियों बुराईयों से डरना भी चाहिए। चार तरह के काम कभी नहीं करने चाहिए।
पहला जिसे करने के बाद स्वयं से भय लगे
, दूसरा जिसे आपके माता-पिता पंसद नहीं करे,
तीसरा जिससे अपने लोग पंसद नहीं करे
चौथा जिसे गुरु पसंद नहीं करें।
जिस काम से माता-पिता खुश हो जाए, गर्व करे वह कभी गलत नहीं हो सकता।
जैन दर्शन की व्याख्या करते हुए कहा कि जिस वस्तु को प्रथम क्षण में देखने से जो भाव हमारे मन में आते हैं वह वस्तु उसी रूप में हमारे काम आती है। माता-पिता को चाहिए कि अपनी अबोध संतान द्वारा प्रथम बार किए कार्य को उसे अवश्य बताएं। उन्होंने कहा कि जो शुभ कार्य आप द्वारा पहली बार किया गया उसका स्मरण आपको सकारात्मक ऊर्जा देगा। जिनवाणी के महत्व पर मुनिश्री ने कहा कि जिस तरह माता अपनी संतान को सुधारने और संवारने के लिए कुछ भी करती है उसी तरह जिनवाणी भी चाहती है उसके उपासक हर हाल में वो कार्य करें जो उसे धर्म से जोड़ें।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
पहला जिसे करने के बाद स्वयं से भय लगे
, दूसरा जिसे आपके माता-पिता पंसद नहीं करे,
तीसरा जिससे अपने लोग पंसद नहीं करे
चौथा जिसे गुरु पसंद नहीं करें।
जिस काम से माता-पिता खुश हो जाए, गर्व करे वह कभी गलत नहीं हो सकता।
जैन दर्शन की व्याख्या करते हुए कहा कि जिस वस्तु को प्रथम क्षण में देखने से जो भाव हमारे मन में आते हैं वह वस्तु उसी रूप में हमारे काम आती है। माता-पिता को चाहिए कि अपनी अबोध संतान द्वारा प्रथम बार किए कार्य को उसे अवश्य बताएं। उन्होंने कहा कि जो शुभ कार्य आप द्वारा पहली बार किया गया उसका स्मरण आपको सकारात्मक ऊर्जा देगा। जिनवाणी के महत्व पर मुनिश्री ने कहा कि जिस तरह माता अपनी संतान को सुधारने और संवारने के लिए कुछ भी करती है उसी तरह जिनवाणी भी चाहती है उसके उपासक हर हाल में वो कार्य करें जो उसे धर्म से जोड़ें।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

