बंधा जी-दुर्लभमति माताजी ने कहा कि आप सभी श्रावकों एवं श्राविकाओं को दस दिन तक अपनी दिनचर्या बदल कर अपने आप को सुव्यवस्थित करना है। आप लोगों को अनेक नियमों का पालन करना है। सुबह 5 बजे उठकर पंच परमेष्ठी की जाप करना। ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना श्रावक एवं श्राविकाएं मर्यादित वस्त्र पहनकर मंदिर में आएं। माताजी ने बताया कि ये दस दिन जैन धर्म के दस लक्षणों को दर्शाते हैं, जिनको अपने जीवन में अवतरित कर मानव मुक्ति पथ का पावन मार्ग प्रशक्त कर सकता है। इसीलिए इस पर्व को दसलक्षण पर्व भी कहा गया है।
क्या है दसलक्षण पर्व:
आदर्श अवस्था में अपनाए जाने वाले गुणों को दशलक्षण धर्म कहा जाता है। इसके अनुसार जीवन में सुख-शांति के लिए उत्तम क्षर्मा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, अकिंचन और ब्रह्मचर्य आदि दशलक्षण धर्मों का पालन हर मनुष्य को करना चाहिए।
उत्तम क्षमा यानी गलती हो जाना हमारा स्वभाव है, लेकिन उसको क्षमा करना मानवता है। अर्थात् उत्तम क्षमा को धारण करने से जीवन की समस्त कुटिलताएं समाप्त हो जाती हैं। मानव का समस्त प्राणी जगत से एक अनन्य मैत्रीभाव जागृत हो जाता है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी