सागवाड़ा-शुभ और अशुभ का होना वास्तव में मनुष्य के कर्मों पर निर्भर करता है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर्मों का परिणाम समस्त प्राणियों को भोगना पड़ता है वहीं कभी कभी अन्य के द्वारा किए अथवा कराए गए अप्रत्यक्ष पाप कर्म के सहभागी होने का दंड भी भोगना पड़ता है।
आचार्य श्री सुनील सागर जी महाराज ने सोमवार को ऋषभ वाटिका स्थित सन्मति समवशरण सभागार में धर्मसभा में यह बात कही। आचार्य ने जैन शास्त्र मूलाचार एवं शीलगुणाचार ग्रंथों के श्लोकों का उल्लेख करते हुए कहा कि जहां प्रकृति और प्रवृत्ति में आश्रव होता है वहां शुभ योग, शुभ आश्रव तथा शुद्धाेपयाेग होना निश्चित है, मगर यह सब मन वचन और काया के शुद्ध भावों पर निर्भर करता है। जहां शुभ होता है वहां मंगल और जहां अशुभ होता है वहां दंगल ही दंगल होता है। आचार्य ने भारत जैसे महान देश में जन्म लेने को सौभाग्यशाली मानते हुए कहा है कि भारतीय होना गौरवशाली है क्योंकि यहाँ जन्म से ही वंश, कूल मर्यादा,धर्म तथा अहिंसा ज्ञान मिलना शुरू हो जाता है। उन्होंने कहा कि भारतीय विदेश में कहीं पर भी चले जाएं मगर गांव का मंदिर,धार्मिक स्थल और प्रारम्भिक शिक्षा स्कूल कभी नहीं भूलते हैं। आचार्य ने इस अवसर सागवाड़ा में स्थित जैनालयों एवं धर्मस्थलों को प्राचीन वैभवशाली बताते हुए कहा कि यहां की धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करने वाली हज़ारों वर्ष की पुरातन संस्कृति और रथोत्सव परंपराएं यहां आज भी जीवंत हैं। आचार्य के प्रवचन पूर्व धर्मसभा को संघस्थ मुनि श्री सुधींद्र सागर जीमहाराज ने संबोधित किया।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
आचार्य श्री सुनील सागर जी महाराज ने सोमवार को ऋषभ वाटिका स्थित सन्मति समवशरण सभागार में धर्मसभा में यह बात कही। आचार्य ने जैन शास्त्र मूलाचार एवं शीलगुणाचार ग्रंथों के श्लोकों का उल्लेख करते हुए कहा कि जहां प्रकृति और प्रवृत्ति में आश्रव होता है वहां शुभ योग, शुभ आश्रव तथा शुद्धाेपयाेग होना निश्चित है, मगर यह सब मन वचन और काया के शुद्ध भावों पर निर्भर करता है। जहां शुभ होता है वहां मंगल और जहां अशुभ होता है वहां दंगल ही दंगल होता है। आचार्य ने भारत जैसे महान देश में जन्म लेने को सौभाग्यशाली मानते हुए कहा है कि भारतीय होना गौरवशाली है क्योंकि यहाँ जन्म से ही वंश, कूल मर्यादा,धर्म तथा अहिंसा ज्ञान मिलना शुरू हो जाता है। उन्होंने कहा कि भारतीय विदेश में कहीं पर भी चले जाएं मगर गांव का मंदिर,धार्मिक स्थल और प्रारम्भिक शिक्षा स्कूल कभी नहीं भूलते हैं। आचार्य ने इस अवसर सागवाड़ा में स्थित जैनालयों एवं धर्मस्थलों को प्राचीन वैभवशाली बताते हुए कहा कि यहां की धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करने वाली हज़ारों वर्ष की पुरातन संस्कृति और रथोत्सव परंपराएं यहां आज भी जीवंत हैं। आचार्य के प्रवचन पूर्व धर्मसभा को संघस्थ मुनि श्री सुधींद्र सागर जीमहाराज ने संबोधित किया।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

