महान साधक को शत शत नमन




जिनकी साधना जिनका अदम्य साहस की प्रतिमूर्ति आज समाधीस्थ हो गयी मुनि श्री चिन्मय सागर जी महाराज  जिन्होंने अंत समय सलेखना को धारण कर अंत  समय मोक्ष का लक्ष्य प्राप्त किया ऐसे साधक बिरले होते जो  जंगल मे रहकर साधना  करते थे कितने ही आदिवासी लोगो को नशा मुक्त किया सही मायने मे कहा जाये तो आप साधना के प्रस्तर  है उनका सानिध्य  हाड़ोती की पावन  धरा  कोटा और आस पास के नगरो को वर्ष 2007 व 2008 मे  मिला आपने वर्ष 2007 बोराबास के  जंगल मे साधना की जो अछूती नहीं रही आपका सानिध्य वर्ष 2007 मे रामगंजमंडी नगर को मिला जिसका साक्षी  शाहजी चोराहा रहा जहा उनका मांगलिक उद्बोधन हुआ जो सभी के ह्रदय को छु गया उस समय आर्यिका श्री सम्मेद शिखर मति माताजी व कैलाशमति माताजी मे विराजित रही मुझे भी उनके समीप रहने उनकी सेवा का स्वर्णिम अवसर व आशीष मिला  साक्षात यह देख पाकर मे गदगद था उस समय माताजी व मुनि श्री की धर्म साधना को सुना हाड़ोती का कोटा नगर भुला नहीं सकता जब वर्ष 2008 मे पंचकल्याणक हुआ जो एक इतिहास रच गया उन्ही के सानिध्य मे हाड़ोती की प्रथम त्रिकाल चोबीसी बनकर निर्मित हुयी
आपने अंत समय मे यह एक जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया की म्रत्यु एक साधना
आपकी साधना आपका तप आपका त्याग युगो युगो तक स्वर्णिम पटल पर अमिट रहेगा
भाव  भीना नमन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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