खुरई-सम्यकदर्शन, सम्यकज्ञान से इस जीव का कल्याण संभव नहीं। सम्यक चारित्र होना जरूरी है। साईकिल के हैंडिल की तरह होता है सम्यकदर्शन। सम्यकज्ञान ब्रेक की तरह होता है और सम्यक चारित्र पैडल की तरह होता है। बिना पैडल वाले साईकिल का चलना दुष्कर हो जाता है। यह बात प्राचीन दिगंबर जैन मंदिर में प्रवचन देते हुए मुनिश्री प्रभात सागर जी महाराज ने कही।
उन्होंने कहा कि पराधीनता में सपने में भी सुख नहीं मिल सकता फिर चाहे आपके पास कितना भी धन, वैभव, पुत्र-पुत्री, यश, कीर्ति क्यों न हो। जब मुसीबत आती है तो हमारा स्वयं का विवेक, हमारी स्वयं की क्षमता, आत्मविश्वास ही कारगार सिद्ध होता है। हमारे अपने इष्ट परिवारजनों पर भी जब सामूहिक रूप से विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ता है तो सभी अपनी-अपनी जान बचाने को ही आतुर नजर आते हैं।
उन्होंने कहा कि जिनका सेल्फ कान्फीडेंस अर्थात आत्मबल कमजोर होता है वह ठीक से न तो लौकिक कार्य ही कर पाता है और न ही पारलौकिक। गुरू तो मात्र आपको ज्ञान का मान ही कराते हैं। उपादान तो आपका अपना ही होता है। निमित्त, उपादान एक दूसरे के पूरक हुआ करते हैं। उन्होंने कहा कि संसारी प्राणी को असीम पुण्यार्जन के कारण ही सुख, शांति का प्रादुर्भाव हो सकता है।
पुत्र-पुत्री, बहू यदि संस्कारित मिल जाए तो घर में ही स्वर्ग के सुखों की अनुभूति होने लगती है और दूसरी और अकूत धन-दौलत के उपरांत भी परिवार में व्यक्ति संस्कारित न हो तो नरक का आभास होने लगता है। व्यक्ति को अपनी तृष्णा को निरंतर कम करने का प्रयास करते रहना चाहिए। स्व का कल्याण सत्संग, स्वाध्याय, पूजा आदि धार्मिक कार्यों में निहित होता है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी