सीहोर-संत शिरोमणि आचार्य 108 विद्या सागर जी महाराज के शिष्य मुनिश्री अजित सागर जी महाराज ने ससंघ सीहोर नगर में प्रवेश किया। अल्प प्रवास पर पधारें मुनिश्री ने श्रीपार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर छावनी में आशीष वचन देते हुए कहा कि जैसे संस्कार होंगे, वैसा ही हमारा संसार होगा। उन्होंने कहा कि संस्कार से ही हम संस्कृति को प्राप्त कर सकते हैं। संस्कार ही एक ऐसी वस्तु है जो जन्म से लेकर मरण तक काम आती है। जन्म के समय संस्कार होते हैं तो मरण के समय भी होते हैं। यदि जन्म से हमारे संस्कार अच्छे हो तो हमारा मरण भी अच्छा होता है। मरण अच्छा श्रेष्ठ होने का अर्थ है कि अब हमारी यात्रा दैत्य की नहीं देवत्व की होगी। पुण्यात्मा परमात्मा की यात्रा होगी। मुनिश्री ने आगे कहा कि जैसे हमारे संस्कार होंगे वैसा ही हमारा संसार होगा। संस्कारों से ही संसार का अंत होता है। संस्कारों से ही हमारा संसार अनंत भी होता है, अर्थात संस्कार से हम संसार से तर सकते हैं। संस्कार से ही डूब भी सकते हैं। हमारे अच्छे संस्कार ही स्वर्ग और मोक्ष हैं तो हमारे बुरे संस्कार ही नर्क,निगोद हैं। यह संस्कार में कुछ तो मां के गर्भ से प्राप्त होते हैं। कुछ पूर्व जन्म के होते हैं और कुछ तो संगति के होते हैं। इन सब संस्कारों में मां के द्वारा दिए गए संस्कार ही श्रेष्ठ होते हैं जो गर्भ से लेकर आते हैं। इसलिए माताओं को चाहिए कि यदि वे अपनी संतान को कंस नहीं कृष्ण, मारीच नहीं महावीर, रावण नहीं राम, बुद्धु नहीं बुद्ध बनाना चाहती है। तो गर्भावस्था में श्रेष्ठ आचरण करे।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी