बहको मत नदी की तरह बहते चले जाओ- आचार्यश्री

 बड़वाह-अहिंसा धर्म एक व्यापक धर्म है। यह धर्म सभी को अपनाने के लिए कहता है। इस दयामय धर्म की रक्षा करें। यदि धर्म नहीं होगा तो हमारा जीवन किस काम का। मनुष्य के मन संयम होना जरूरी है। बाहरी व सांसारिक तत्वों के बारे में सोचकर कहीं हम अपने मौलिक मनुष्य जीवन को न खोएं। शास्त्रों को पढ़ने से ज्ञान प्राप्त होता है। हम हमारे पूरे जीवन में बस भौतिक वस्तुओं के संग्रहण में ही खपा देते हैं। एक किसान ही होता है जो उसके खेतों में पैदा हुए अनाज को भंडारण करने के बजाय उसे दे देता है। आगामी वर्ष की फसलों की चिंता में लग जाता है लेकिन हम उसी अनाज का भंडारण गोदाम में कर लेते हैं। हमें गोदाम नहीं गो धाम की चिंता करना चाहिए। बुद्धि को शांत रखना आवश्यक है। यदि बुद्धि शांत होगी तो जीवन में सब अच्छा होगा। यह उदगार आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने मंगल प्रवचन मे कहे उन्होने कहा  इस सांसारिक जीवन में बहको में मत नदी की तरह बहते चले जाओ। 
     संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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