गंजबासौदा-त्योंदा रोड स्थित शांतिनाथ जिनालय मुनि श्री निर्णय सागरजी महाराज ने दान की महिमा बताते कहा कि जैसा आहार दान हम मुनिश्री को देते हैं, वैसे ही मुनिराज के भाव हो जाते हैं।
उन्होंने एक दृष्टांत सुनाया कि एक साधु किसी के यहां आहार लेने गए थे वहां से एक हीरा चुराकर लाए। जैसे ही भोजन पचा तो उनके भाव पुन: विशुद्ध हो गए कि मैंने कितना बड़ा पाप कर दिया। गुरु से चोरी का पश्चाताप करने गए तो पता चला जहां मुनिराज ने आहार लिया था। वहां भोजन चोरी के पैसों से बना था। इसलिए जैसा धन होता है वैसा अन्न और जैसा अन्न वैसा मन हो जाता है। इसलिए गृहस्थों को ईमानदारी से अर्जन किए धन से भोजन बनाना चाहिए।
मुनि को आहार दान देना चाहिए। ऐसा ही स्वयं आहार करना चाहिए तभी उसका कल्याण हो सकता है। मुनिश्री ने कहा कि भोजन के देने मे अकेले लेने वाले साधू की महिमा नहीं होती देने वाले के द्रव्य, विधि का भी बहुत महत्व होता है, अतएव सही विधि से ईमानदारी का द्रव्य सदाचारी व्यक्ति साधू को देता है तो अपूर्व पुण्य का संचय होता है तथा पाप का नाश होता है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी