सागर मे आचार्य महाराज के सानिध्य मे पहली बार षटखंडागम वाचना शिविर आयोजित हुआ सभी ने खूब रूचि ली लगभग सभी वयोवृद्ध और मर्मज्ञ विद्वान आये जिन महान ग्रंथो को आज तक दूर से ही माथा झुकाकर अपनी श्रध्दा व्यक्त की थी उन पवित्र ग्रंथो को छुने देखने पड़ने का सोभाग्य सभी को मिला
वाचना की समापन बेला मे सभी विद्वानों के परामर्श से नगर के प्रबुद्ध नागरिको के एक प्रतिनिधि मंडल ने आचार्य महाराज के पावन चरणों मे निवेदन किया की समूचे समाज की भावना को देखते हुये आप "चारित्र - चक्रवती पद को ग्रहण करके हमको अनुग्रहित करे सभी जन ने करतल ध्वनि के साथ हर्ष व्यक्त किया आचार्य महाराज मोन रहे तत्काल कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की
कुछ समय उपरांत गुरुवर का प्रवचन प्रारम्भ हुआ और प्रवचन के अंत मे कहा की "पद पद पर बहुपद मिलते है पर वे दुःख -पद आस्पद है प्रेय यही बस एक निजी -पद सकल गुणों का आस्पद है"- और कहा आप सभी मुझे मुक्ति -पथ पर आगे बढने दे और इन सभी पदों से मुक्त रखे आप सभी के लिए मेरा यही आदेश उपदेश है और सन्देश है
सभा मे सन्नाटा सा छा गया सभी के नयन पद के प्रति आचार्य महाराज की निस्पृहता देखकर हर्ष व विस्मय से भीग गयी
सागर {अप्रैल 1980
मुनि श्री क्षमासागर जी महाराज
पुस्तक आत्मान्वेषी
संकलन अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमंडी

