तप का मान 74 की आयु, 6 दिन में 40 किमी विहार कर आज दो दशक बाद पधारेंगे विद्यासागरजी, शिक्षा केंद्र में आ रही अड़चन ने किया था इंदौर से दूर


इंदौर-संत आचार्य श्री  विद्यासागरजी महाराज रविवार को इंदौर में मंगल प्रवेश करेंगे। सिढ़्वरकूट से इंदौर की ओर रुख करने के बाद 6 दिन में वे 40 किमी विहार कर चुके हैं। इससे पहले वे 1999 में शहर आए थे। इसके बाद से ही समाज उनके फिर आगमन के लिए घड़ियां गिन रहा है। एक वेबसाइट पर 'गुरुवर हमको तारो, इंदौर पधारो' दोहराते हुए लगातार गणना चल रही है। इसमें अब तक 7 हजार 347 दिन 16 घंटे से ज्यादा का वक्त दर्ज हो चुका है। आचार्यश्री 31 संतों के संघ के साथ शहर में प्रवेश करेंगे। इस अवसर को अविस्मरणीय बनाने के लिए समाज के साथ ही शहर ने खासी तैयारियां की हैं। बायपास स्थित बिंजालिया फार्म से बैंड-बाजाें के साथ जुलूस से उनकी अगवानी की जाएगी। -
आचार्य शनिवार को बायपास स्थित सिल्वर पार्क पहुंचे।

74 वर्ष की आयु में भी 24 में से सिर्फ ढाई घंटे विश्राम करते हैं।
रात 11 बजे विश्राम के लिए जाते हैं और 1.30 बजे उठ जाते हैं।
लकड़ी के तखत पर सोते हैं। करवट नहीं बदलते ताकि दूसरी ओर कोई जीव की हानि न हो।
दो हिस्सों में रात 1.30 से सुबह 5.30 बजे तक, शाम 5 से 11 बजे तक। आठ घंटे ध्यान करते हैं।
सुबह 9.45 बजे आहार चर्या करते हैं। एक ही बार भोजन व पानी लेते हैं।
हरी सब्जियों, दूध, मीठा, फल, ड्राय फ्रूट, तिल, जूस नहीं लेतेे।
रोटी, मूंग-तुअर की दाल व कढ़ी लेते हैं।
हर दो महीने में खुद केश लोचन करते हैं।
(संघ में शामिल ब्रह्मचारी सुनील भैया के अनुसार)
मौसम की प्रतिकूलताएं भी नतमस्तक; तख्त पर सोते हैं, एक करवट
शिक्षा केंद्र का लैंड यूज नहीं बदलने से थे नाखुश, अब जाकर हो पाया
आचार्य विद्यासागर जी के आशीर्वाद से संचालित दयोदय चेरिटेबल ट्रस्ट 20 वर्षों से ग्राम रेवती में 27 एकड़ का लैंड यूज बदलवाने की कोशिश कर रहा था। आचार्यश्री यहां पर जैैन शिक्षा केंद्र और सहस्त्रकूट जिनालय का निर्माण कराना चाहते हैं। ट्रस्ट लैंड यूज नहीं करा पा रहा था। इससे आचार्यश्री नाराज थे। 2015 में केंद्र के लिए 3 करोड़ रु. भी इकट्‌ठा हुए थे। वे आसपास से गुजरे लेकिन शहर नहीं आए। ट्रस्ट के नरेंद्र जैन के मुताबिक, शासन स्तर पर सुनवाई न होने से दिक्कत आई। विधानसभा चुनाव से पहले टीएंडसीपी डायरेक्टर राहुल जैन ने प्रक्रिया शुरू की और पांच महीने पहले ही विभाग ने लैंड यूज बदला है।
सबसे पहले ब्रह्मचारी के रूप में इंदौर आए थे आचार्यश्री
आचार्य विद्यासागरजी सबसे पहले 1967 में ब्रह्मचारी विद्याधर के रूप में आचार्य देषभूषणजी महाराज के संघ के साथ तीन दिन के लिए 25 जनवरी को इंदौर आए थे।
20 साल पहले इंदौर में बोले थे...
सभी समाजों की एकता से ही मिलेगी सफलता
कि सी भी कार्य की सफलता के लिए एकता जरूरी है। पटरियों में पर्याप्त समान दूरी न हो तो रेलगाड़ी भी नहीं दौड़ सकती। हम कार्य तो कर सकते हैं, लेकिन कई बार इसलिए नहीं कर पाते कि हमारी पटरी नहीं बैठती। आप योजना लंबी-चौड़ी बना लें, लेकिन कार्यरूप नहीं दे पाए तो सब बेकार हो जाता है। जीवन में ज्ञान, चरित्र, दर्शन ये रत्नत्रय आ जाएं तो जीवन भव्यतम हो सकता है। आप लोग इंदौर की क्षमता को पहचान नहीं पा रहे हैं। आप कदम उठाएंगे तभी तो मंजिल तक पहुंचेंगे। बोरों में भरा धान अंकुरित नहीं होता, उसे अंकुरित होने के लिए मिट्‌टी, पानी, प्रकाश की जरूरत होती है। दर्शन, ज्ञान, चरित्र से हम अपने आप को उन्नत बना सकते हैं। - 1999 में गोम्मटगिरी में चातुर्मास के दौरान।
         संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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