दान से प्राप्त आनंद असीम होता है, इसे दैनिक जीवन का हिस्सा बनाएं: मुनिश्री

खुरई-प्राचीन जैन मंदिर में मुनिश्री अभय सागर जी महाराज ने कहा कि दान में धन  और जीवन की सार्थकता निहित है। दान का महत्व अपार है। दान शांति का कारण  बनता है। दान से प्राप्त आनंद असीम होता है, दान को दैनिक जीवन का हिस्सा  बनाया जाना चाहिए।
 उन्हाेंने कहा कि शास्त्रों में चार प्रकार के दान  का वर्णन मिलता है। इनमें आहार दान सर्वश्रेष्ठ होता है। इसके बाद औषधि  दान, अभयदान और शास्त्र दान का स्थान आता है। दान के  पीछे स्वकल्याण का भाव होना चाहिए। दान से पूर्व पात्र का चयन भी आवश्यक  है। अपात्र को दिया गया दान कष्टों का कारण बनता है। उचित समय पर उचित  व्यक्ति को दान देने से महान परिणाम हासिल होते हैं। जिस तरह एक छोटा सा  बीज अनुकूल परिस्थितियां पाकर विशाल वटवृक्ष बन जाता है उसी तरह एक छोटा सा  दान भयंकर परिस्थितियों को टाल देता है। मुद्रा या मूल्यवान धातुओं के रूप  में दिए गए दान के परिणाम सुखद नहीं होते। यदि इस तरह के दान से कोई  व्यक्ति गलत काम करने लगता है तो उसके कुफल में दानकर्ता को भी भागीदार  होना पड़ेगा।
 उन्हाेंने कहा कि औषधि दान भी श्रेष्ठ है। शारीरिक और  मानसिक बीमारियां लगातार बढ़ रही हैं। औषधि दान से इन्हें कम किया जा सकता  है। अभयदान में कुछ खर्चा नहीं करना पड़ता। यह नैतिक रूप से भी आवश्यक है।  जीवों के प्रति दया का भाव उनकी रक्षा करना, किसी को भी मानसिक या शारीरिक  रूप से कष्ट न पहुंचाना तथा अन्य जीवों के कष्टों का निवारण अभयदान की  श्रेणी में है। दान की मात्रा के मुकाबले भावना का अधिक महत्व है। यदि दान  की मात्रा से ही दान के फल का निर्धारण होता तो दुनिया के धनिक संपूर्ण  अनंत सुख को प्राप्त कर लेते लेकिन ऐसा होता नहीं है अपनी शक्ति और  सामर्थ्य के अनुरूप सभी को दान करना चाहिए।
 उन्हाेंने कहा कि  शास्त्रदान की अपनी महत्वता है। जिज्ञासु प्रवृत्ति के लोग भी इस दान को  पाने के पात्र हैं। मूढ़ तथा संकीर्ण विचारों वाले व्यक्ति को शास्त्रदान  नहीं देना चाहिए। वर्तमान में अन्य कई प्रकार के दान भी सामने आए हैं। इस  प्रकार के दान से भी पुण्य प्राप्त होता है कि गरीब छात्रों को उनके  पठन-पाठन से सहयोग किया जाए, बेसहारा व असक्त लोगों के रहने, खाने, पहनने  की व्यवस्था की जाए तथा संपूर्ण समाज के हित में किए जा रहे कार्यों में  भागीदारी निभाई जाए। जो व्यक्ति अपने जीवन को सार्थक करना चाहते हैं उसे  बैंक बैलेंस बढ़ाने की बजाए दान करने, कराने की प्रवृत्ति को बढ़ाना चाहिए।
     संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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