जीवन मे हम संगीत प्रगट करते है या सिरदर्द की तरह जीते है ये हमारे ऊपर प्रमाण सागर जी

भोपाल- मुनि श्री प्रमाण सागर जी महाराज ने कहा जो अपनी वीणा को पहचान लेता है उसका जीवन संगीत है। जो उसे नही जानते उसका जीवन सिरदर्द है। यह हमारे ऊपर है हम जीवन के संगीत का रस प्रगट करते है या सारी जिंदगी को सिरदर्द की तरह जीने को मजबूर हो जाते है।
      इकबाल मैदान मे मुनि श्री ने सबोधित करते हुए कहा दुनिया मे दो तरह के लोग होते है। कुछ लोग जीवन का वास्तविक लाभ उठाते हुए अपने जीवन को आनंद की यात्रा वना डालते है। दूसरे वे जो जीवन जीते है, जिये चले जाते है, पर उनके जीवन मे उपलब्धि जैसा कुछ घटित नही होता। उन्होंने कहा संत कहते है कि देह की इस वीणा मे जब साधना का तार जोड़ोगे तो उसके भीतर से जो उभरेगा,वही तुम्हारे जीवन के आनंद का संगीत होगा। वही मधुरता का आधार बनेगा। मधुरता जीवन में जब तक आ सकती जब तक हम जिंदगी के तार ठीक नही करते। उन्होंने कहा आज वीणा तो सबके पास है, लेकिन तार टूटे हुए है। जरूरत  है केवल उस तार को जोड़ने की। धर्म और कुछ नही करता, धर्म हमे उस टूटे हुए तार को जोड़ने के लिये उत्प्रेरित करता है।
     संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंदिब

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