जीवन का हर पल उत्सव बनाकर जीये



पारस जैन पार्श्वमणि पत्रकार कोटा (राज )-एक परम मित्र मेरे सामने रहते थे। रोज मंदिर जाते समय बड़े प्यार एवम  आत्मीयता से मिलते थे। उनका वात्सलय मय भाव देखते ही बनता था। एक दिन अचानक एक एक्सीडेंट में वो अल्प आयु मे ही इस दुनिया से चले गए। यह सुन मन बहुत दुखी हुआ। 
परम पूज्य आचार्य 108 विमर्श सागर जी महाराज ने बड़ी सुन्दर ह्रदय को छूने वाली लाइने  लिखी ।जीवन है पानी की बून्द कब मिट जाए रे होनी अनहोनी कब क्या घट जाए रे। यह जीवन का वास्तविक सत्य है। जीवन को जीवन्त बनाने का महांमत्र है। जितनी स्वास हमे मिली है उससे एक स्वास भी ज्यादा दुनिया को कोई डॉक्टर नही दे सकता है। जीवन का एक एक पल उत्सव बना कर जीना चाहिए।।जीवन मे सदैव सकारात्मक रहे उससे  हमे नई ऊर्जा मिलती है ।  उचाइयां छूने की शक्तियां मिलती है। जीवन मे निर्मल परिणाम बनाये रखे । हमारी सोच के अनुसार ही जीवन बनता है सोच ही स्वर्ग और नर्क की यात्रा कराती है।हम कभी दुसरो का बुरा नही सोचे। सबका कल्याण हो सब सुखी रखे कोई दुखी नही रहे यही मंगल भावना ह्दय में सदैब रखनी चाहिए।व्यक्ति की नही  व्यक्तित्व की साधनों की नही साधना की पूजा  आराधना होंती है । एक भजनकार ने कितनी सुन्दर बात लिखी है सज धज के जिस दिन मौत की शहजादी आएगी ना सोना काम आएगा ना चाँदी आएगी।  एक गीत भी है एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल। हिन्दू मान्यता के अनुसार  शरीर पांच तत्वों से मिलकर आया और अंत मे पाच तत्वों में मिल जाएगा। जब मानव इस धरती पर आता है तो 4 से 5 किलो का वजन लेकर आता है जब इस दुनिया से जाता है तब भी 4  से 5 किलो का वजन उसकी अस्थियों का होता है। कभी कभी तो लगता है कि मानव जीवन पांच किलो की राख से ज्यादा नही है। फिर क्यों हम क्रोध, लोभ, मोह, माया के चक्कर मे पड़े है। मेरी भावना में कितनी दिल को छूने वाली बात आई है जिसने राग द्वेष कामादिक जीते जी सब जान लिया ।सब जीवो को मोक्ष मार्ग का  निष्पह  हो उपदेश दिया।  अहंकार का भाव न रखूं कभी न  किसी पर क्रोध करू देख दुसरो की बढ़ती को कभी न ईर्ष्या भाव धरू। मेरी भावना जिस दिन मेरी भावना हो जाएगी उस दिन संसार से पार होने का रास्ता खुल जायेगा । यदि मेरी भावना को पूरे भारत के सभी सरकारी एवम प्राइवेट स्कूलों में अनिवार्य रूप से  प्रार्थना में शामिल कर लिया जाए तो इससे बड़ा कोई शुभ काम नही होगा।  यह मात्र जैन के लिए नही अपितु जन जन के लिए बहुत कल्याणकारी है। जीवन का एक पल भी व्यर्थ चला जाये तो कोरोडो स्वर्ण मुद्राये देने के बाद भी वो क्षण दोबारा नही आता । इसलिए भगवान महावीर स्वामी ने सन्देश दिया भूत एवम भविष्य की चिंता छोड़ कर वर्तमान में जीयो। दुसरो को सुधारने की अपेक्षा स्वयम सुधरो  । जियो ओर जीने दो।स्वयं को जानो आत्मा को पहचानो । हमने कभी  विचार किया किस गति से आये है किस गति में चले जायेंगे ।चौरासी लाख गतियों में भटकने के बाद इस दुर्लभ  मनुष्य पर्याय का एक एक पल अदभुत आनंद एवम उत्साह के साथ बीते यही सद प्रयास करना चाहिए।*
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