मंडीबामोर-स्कूल परिसर में आयोजित भावना योग शिविर के शुभारंभ पर मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज ने शिविरार्थियों को भावना योग के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा कि जिस व्यक्ति की जैसी भावना होती है। उसके अनुरूप ही उसका हित अहित होने लगता है। चेतन मन को अवचेतन मन नहीं संचालित करता है। हमारी भावनाएं ही अच्छे बुरे जीवन का निर्धारण करती है। जो व्यक्ति आत्म सुख को पाना चाहते हैं उन्हें भावना योग का अभ्यास निरंतर करते रहना चाहिए। भावना का प्रभाव हमारे शरीर पर किस तरह पड़ता है। इसको हम प्रत्यक्ष रूप से जब किसी व्यक्ति को गुस्सा आता है या जब वह शांत मुद्रा में होता है उसके शरीर में स्पष्ट रूप से परीलक्षित होते देख सकते हैं।
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
मुनिश्री ने कहा कि व्यक्ति का जब आत्मबल सुदृढ़ होता है तो बड़ी से बड़ी विपत्तियों से लड़ने की क्षमता स्वयमेव ही आ जाया करती है और इसके विपरीत हमारी सोच नकारात्मक होती है या निराशावादी होती है तो थोड़ी सी भी विपत्ति आने पर वह घबरा जाता है। जिसकी मन की शक्ति सुदृढ़ होती है वह अपनी मंजिल प्राप्त कर लेता है। वैसे भी कहा गया है कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। भावना योग करने से आत्मबल तो बढ़ता ही है इसके साथ ही इंद्रियों पर कैसे विजय प्राप्त की जाए उसकी कला से भी व्यक्ति पारंगत हो जाता है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी