बांसवाड़ा-आचार्य श्री पुलक सागर जी महाराज के सानिध्य से सोमवार को कुशलबाग मैदान में 8 दिवसीय ज्ञान गंगा महोत्सव का शुभारंभ हुआ। जिसमें आचार्य पुलक सागरजी महाराज ने धर्मा सभा की। । ज्ञान गंगा महोत्सव के पहले दिन आचार्यश्री ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि लंबी जुबान और लंबा धागा हमेशा उलझता है। इसलिए हमेशा कम बोलो लेकिन मीठा बोलो। मनुष्य की पहचान रंग रूप से नहीं, बल्कि उसकी जुबान से होती है। अगर आपने घर संभाला और जुबान नहीं संभाली तो कोई फायदा नहीं होगा। आचार्यजी ने कहा क जब मैं बांसवाड़ा आया तो सभी कहने लगे गुरुदेव का मुंह मीठा करो, मिठाई खिलाओ लेकिन मेरा सवाल था कि मिठाई तो उन्हें खिलाओ जिनका मुंह खारा है। मेरा तो मुंह पहले से ही मीठा है और मैं तो हमेशा मीठा बोलता हूं। जीवन में पूजा पाठ नहीं करो तो चलेगा, तीर्थयात्रा नहीं किया चलेगा, बस केवल जुबान की साधना कर लो तो जीवन सफल हो जाएगा। नहीं बोलोगे तो चलेगा लेकिन बुरा, कड़वा कभी भी मत बोलो। “खुदा को भी पसंद नहीं सख्त जुबान, इसलिए हड्डी नहीं दी जुबान में’ आचार्यजी ने कहा की चूना कितना सफेद होता है लेकिन मुंह में डालकर देखो जल जाएगा। लेकिन गुलाब जामुन काला होता है लेकिन मीठा होता है। इसलिए काले गोरे रंग से कुछ नहीं होता आपकी मीठी वाणी ही आपको सफल बनाती है। आचार्यजी ने कहा कि जानवर भी वाणी को समझते हैं। आप उन्हें प्यार से बुलाओ चले आएंगे, लेकिन चिल्लाओगे तो जानवर भी भाग जाएंगे। तोता मिर्ची खाता है, लेकिन बोलता मीठा है। महिलाओं से भी आचार्यजी ने कहा की लिपस्टिक लगाने से कुछ नहीं होता, वाणी मीठी बोलने से सब कुछ काम हो जाता है। मैं आपकी सौन्दर्य सामग्री के उपयोग पर अटैक नहीं कर रहा हूं बल्कि जुबान की कैसे पहचान होती है, उसके के बारे में बता रहा हूं। आचार्य जी ने एक युवा को सभा में खड़ा कर पूछा कि बता तुम्हे किस तरह की लड़की से शादी करनी है? सुंदर होनी चाहिए? या फिर अच्छी बोलने वाली हो?.... युवक ने कहा अच्छी बोलने वाली लड़की होनी चाहिए। जिस पर गुरुदेव ने कहा मैं खुश हो गया कि आज का युवा सफेद चमड़ी से नहीं बल्कि मीठा बोलने वाली से शादी करना चाहता है। इसलिए जब आप किसी से किस तरह सवाल करते हो उसका जवाब भी उसी तरह से आएगा। आचार्य ने महाभारत का उदाहरण देते हुए कहा कि युद्ध सिंहासन के लिए हुआ था, लेकिन मैं दावे के साथ कहता हूं की यह युद्ध केवल द्रोपदी की कड़वी वाणी की वजह से हुआ था। जिन्होंने दुर्योधन को कहा था कि अंधे का बेटा अंधा है। उसके बाद जो हुआ सब जानते हो। वहीं आचार्यजी ने कहा कि जब कौरव पांडवों के युद्ध की तैयारी चल रही थी तभी युधिष्ठिर आशीर्वाद के लिए पितामह भीष्म के पास आते हैं और उनके चरण स्पर्श करते हैं। पितामह भीष्म भी उन्हें आशीर्वाद देते हैं। तभी दुर्योधन उखड़ जाते हैं और पितामह भीष्म से कहते हैं कि आपने उनको आशीर्वाद कैसे दे दिया। आप युद्ध में किसके साथ हो। पितामह ने कहा कि जो झुकेगा उसे आशीर्वाद मिलेगा। इसलिए जीवन में झुकना सीख लो। आखिर में आचार्य जी ने कहा की शक्कर की चासनी में भगवान की टूटी मूर्ति भी जुड़ सकती है। शाम के समय गांधी मूर्ति पर आनंद यात्रा और गुरुदेव आचार्य जी की आरती की गई। यह जानकारी मुनि सेवा समिति के महामंत्री महावीर बोहरा ने दी।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी